Skip to main content

एक राष्ट्रीय तीर्थ स्थल की यात्रा:Pilgrimage to know our India


आज हम एक ऐसे तीर्थ के बारे में जानेंगे जहां जाकर अपने प्यारे भारत देश की आत्मा को महसूस किया जा सकता है। प्रख्यात तीर्थ नगरी हरिद्वार में स्थित भारत माता मंदिर अपने निर्माण के समय से ही राष्ट्रवादी भक्तों की आस्था का केंद्र रहा है।

शुरू में ही अनुरोध करता हूं। अगर हरिद्वार जाना हो, तो यहां जरूर जाएं।अगर भारतमाता की अमर संतानों को जानना हो तो यहां जरूर जाएं। अगर आप अपने भारत के भौतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक स्वरुप को देखना चाहते हैं तो यहां जरूर जाएं।

इस मंदिर में क्या है? यहां धार्मिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक एवं सामाजिक क्षेत्र की विभूतियों के दर्शन किये जा सकते हैं जिनके विचारों, शिक्षाओं एवं प्रयासों ने आज का भारत गढ़ा है।भारत के बारे में अनेक क़िताबें पढ़कर भी उतना जानना संभव नहीं, जितना यहां आकर एक बार घूमने से मिल सकता है!

आइये, इस मंदिर का इतिहास जानें। 180 फ़ीट ऊंचे इस मंदिर का निर्माण स्वामी सत्यमित्रानंद जी के द्वारा सन 1983 में कराया गया। उस वक़्त की हमारी प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने इसका उद्घाटन किया।

आइये, अब इसे घूमने चलें। यह मंदिर आठमंजिला है। इसकी हर मंजिल पर आपको भारतवर्ष की अलग अलग झांकियां देखने को मिलेंगी।

बाहर से दिखाई देता मंदिर का दृश्य!फ़ोटो में भले ही छोटा दिखे, लेकिन है बहुत ऊंचा! इतना कि पर्यटकों के लिए लिफ्ट भी लगी है। जिन्हें सीढ़ियों पर चढ़ने में दिक्कत हो, वो टिकट लेकर लिफ्ट की सुविधा ले सकते हैं।


यह इस मंदिर का पहला तल है।इस चित्र में अखंड भारत का भौगोलिक स्वरूप एवं सामने भारत माता की मूर्ति दिखाई दे रही है।हमारे पूर्वजों ने भारत को आसेतुहिमालय अर्थात हिमालय से लेकर समुद्र तक फैला हुआ बताया था। इस स्वरूप में यह स्पष्ट दिख रहा है। ध्यान से देखिए, ऊपर की ओर जो उभरा हुआ भाग है, वह हिमालय है। बड़े शहरों एवं महत्वपूर्ण स्थलों को भी बिंदुओं के द्वारा दिखाया गया है।




इस मंदिर के दूसरे तल पर भारत की उन अमर संतानों की मूर्तियां स्थापित हैं, जिन्होंने भारतमाता की सेवा हेतु अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया। ऊपर के चित्र में आप वीर सावरकर, महामना मालवीय एवं लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल को देख सकते हैं।

यह अमर शहीद अशफाकउल्ला की मूर्ति है। भगत सिंह, अशफाकउल्ला, चंद्रशेखर आज़ाद आदि वीर भारत की उस मिट्टी से बने थे, जिन्हें अंग्रेज़ शासक हज़ार बार प्रयास करके भी नहीं तोड़ सके!
यह इस मंदिर का चौथा तल है।इसमें हिन्दू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों से जुड़ी महान विभूतियों के दर्शन किये जा सकते हैं। विभिन्न युगों में हुए इन महापुरुषों ने हमारे देश के धार्मिक एवं सामाजिक विश्वासों को गढ़ा है।

स्वामी दयानंद और स्वामी विवेकानंद। एक साथ। एक ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। एक ने आर्यसमाज बनाया। इन दोनों की शिक्षाओं ने दुनिया भर में कई करोड़ लोगों को प्रभावित किया।सदियों से गुलामी झेल रहे भारत को इन दोनों ने अपने प्रबल शक्तिशाली आध्यात्मिक स्वरूप का ज्ञान कराया।

संत कबीर और महर्षि रविदास।इन दोनों महापुरुषों ने ईश्वर की भक्ति को कर्मकांड की जटिलता से मुक्त कर जन-जन के लिए सुलभ बना दिया। 
संत ज्ञानेश्वर एवं संत गुलाबराय जी। दोनों ही भक्तियोग के महान स्तंभ हैं। इन्होंने बताया कि दुखियों, पीड़ितों एवं मानवमात्र की सेवा ही ईश्वर की सच्ची भक्ति है। 

गोस्वामी तुलसीदास एवं भक्त नरसी मेहता। तुलसीदास जी के बारे में इसी वेबसाइट पर अलग से विस्तृत लेख है, कृपया पढ़ें। नरसी मेहता का जन्म गुजरात में हुआ था। उनका जीवन इस बात का मूर्तिमान आदर्श है कि गृहस्थ जीवन मे रहकर भी ईश्वर की भक्ति की जा सकती है और उन्हें प्राप्त किया जा सकता है।

दोस्तों, आशा है कि ये लेख आपको पसंद आया होगा।आगे भी हम इसी तरह महापुरुषों का स्मरण करते रहेंगे। आपकी अपनी वेबसाइट ashtyaam. com की तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं!

Comments

Popular posts from this blog

श्रीराम और बालि की कथा: एक व्यासकूट Vyaskoot: Decoding the story of Sriram and Bali

दोस्तों,आज हम एक बड़ी ही प्रसिद्ध कथा के बारे में बात करेंगें। यह कथा है किष्किंधा के राजा बालि की। श्रीरामचंद्र जी द्वारा बालि के वध की। बालि को मारकर सुग्रीव को राज्य दिलाने की। इस कथा को अधिकांश लोगों ने पढ़ा होगा। टीवी पर देखा होगा। कहीं न कहीं सुना होगा। दोस्तों, आज हम इस कथा को योगविज्ञान की मदद से देखेंगे। क्यों? क्योंकि अनेक शोधकर्ताओं का मानना है कि यह कथा रहस्यमयी है। अपने प्रचलित अर्थ से अलग किन्हीं अन्य तथ्यों की तरफ संकेत करती है। श्रीरामचंद्र जी, बालि और सुग्रीव की इस कथा का वास्तविक अर्थ योगविज्ञान के जरिये ही समझा जा सकता है। अगर हम इस कथा में छिपे संकेतों को समझ लें, तो बहुत लाभ उठा सकते हैं। "आइये, सबसे पहले एक प्रश्न लेते हैं। राम और बालि की इस कथा को गूढ़ रूप में क्यों लिखा गया? इसमें कुछ रहस्य छिपाए क्यों गए?" " दोस्तों, हमारे धर्मग्रंथों में बहुत जगहों पर अटपटे प्रसंग मिलते हैं। इनका शाब्दिक अर्थ भी अटपटा, फिजूल और अविश्वसनीय लगता है। इन प्रसंगों को व्यासकूट कहा जाता है। व्यास कूट मतलब? वैसी कोड भाषा code language जिसे कोई योगविज्ञान का जा...

शिवरुद्राष्टक: महादेव का अमोघ स्रोत्र

देवाधिदेव महादेव का योगी स्वरुप को दर्शाता चित्र  मित्रों, आप लोगो के द्वारा दिया जा रहा प्रेम और स्नेह मुझे विश्वास दिला रहा है कि यह वेबसाइट आपकी उम्मीदों के अनुसार कार्य कर पा रही है। पिछले दिनों मैंने श्री कागभुशुण्डि जी के बारे में लिखा था। उसमें एक जगह  भगवान महादेव की अमोघ स्तुति शिवरूद्राष्टक के बारे में लिखा गया था जिसका पाठ करने से  भगवान शिव की कृपा तुरंत प्राप्त होती है तथा हमारा मन-मष्तिष्क सकारात्मक ऊर्जा से भर उठता है। आपमें से अनेक पाठकों के अनुरोध मुझे प्राप्त हो रहे हैं कि इस  स्त्रोत के बारे में विस्तृत रूप से लिखूं। यकीन मानिए।मैंने लिखना चाहा, पर हिम्मत नहीं जुटा पाया। शिव की भक्ति को शब्दों में समेटना असंभव है।मैंने सारे अनुरोधों को हाथ जोड़कर किनारे कर दिया। लेकिन, एक पाठक ने गजब का आग्रह कर डाला! उन्होंने कहा -" जो जी में आये,बस लिख डालो!जबतक लिखोगे, शिव का ही स्मरण होगा! जो भी लोग तुम्हारा लिखा पढ़ेंगे, उतनी देर शिव को ही याद करेंगे!!शिव कृपा से ही उनका स्मरण करने का मौका मिलता है।" उनकी बात मुझे अकाट्य लगी। महादेव को याद करके मै...

आइये, समझें वैदिक शिक्षा प्रणाली को: Let us understand Vedic Education System

दोस्तों, विश्वास है आप सभी सकुशल और सानंद हैं। आज हम यौगिक मनोविज्ञान के ऊपर आधारित प्राचीन गुरुकुलों की शिक्षा पद्दति पर बात करेंगे और देखेंगे कि इसे आधुनिक शिक्षा पद्दति में शामिल करके कैसे विद्यार्थियों के लिए सर्वोत्तम परिणाम हासिल किए जा सकते हैं। आइये, शुरू करें। श्रीरामचरितमानस की एक चौपाई है- "गुरु गृह गए पढन रघुराई, अल्प काल विद्या सब पाई"। "मतलब?" " जब रघुनाथ जी गुरु के घर अर्थात गुरुकुल पढ़ने गए तो उन्होनें अल्प काल में ही सारी विद्याएं प्राप्त कर लीं।" अत्यधिक कम समय में ही शास्त्र और शस्त्र विद्याओं में पारंगत होने का ही प्रभाव था कि रघुनाथ जी महर्षि विश्वामित्र की नजरों में आये। उन्हें महर्षि ने अपने आश्रम की सुरक्षा का जिम्मा सौंपा और आगे जाकर अपनी युद्धकला भी सिखाई। महर्षि वशिष्ठ का सम्पूर्ण शास्त्रज्ञान और महर्षि विश्वामित्र का सम्पूर्ण शस्त्रज्ञान श्रीराम में समाहित हो गया। इस तरह वह इस पृथ्वी के तीसरे ऐसे व्यक्ति बने जो शास्त्र और शस्त्र इन दोनों ही क्षेत्रों में चरम सीमा का ज्ञान रखते थे। उनके अलावा अन्य दो व्यक्ति थे- परशु...