मित्रों, आज हम एक contemporary अर्थात समसामयिक विषय पर चर्चा करेंगे।
हमारे देश में इस समय चुनाव चल रहे हैं। लोकसभा हो या विधानसभा, पंचायतें हों या नगर निगम, देखा जाए तो हर साल कोई न कोई चुनाव होता ही रहता है।
चुनाव इसलिये कराए जाते हैं जिससे जनता के पसंदीदा व्यक्तियों को चुना जा सके। ये चुने गए प्रतिनिधि ही विभिन्न स्तरों पर देश को चलाने का कार्य करते हैं। हमारे संविधान में इनकी चुनाव प्रक्रिया, शक्तियों और कार्यों के बारे में सुनिश्चित प्रावधान बनाये गए हैं।
एक सवाल अक्सर हमारे सामने आता है। हमारे नेता में कौन सी विशेषताओं का होना जरूरी है? इस प्रश्न का उत्तर दुनिया के किसी भी संविधान में नहीं है। सारे लोकतांत्रिक संविधान बस एक ही बात कहते हैं-" जिसे जनता बहुमत से चुन ले, बस वही नेता है।"
आइये इस प्रश्न को थोड़ी देर के लिए छोड़ देते हैं। चलते हैं प्राचीन भारत में। वज्जि गणराज्य को विश्व का सबसे प्राचीन लोकतंत्र माना जाता है। यह कहाँ था? यह आधुनिक बिहार के मुजफ्फरपुर, वैशाली नामक जिलों में फैला हुआ एक गणराज्य था। इसकी राजधानी वैशाली थी। वज्जियों की शासन प्रणाली हैरान कर देने वाली थी!
वज्जि संघ में शासन कैसे चलता था? इसके लिए बाकायदा जनता से प्रतिनिधि चुने जाते थे। सबसे पहले गांवों के लोग अपना प्रतिनिधि चुनते थे। फिर ये ग्रामीण प्रतिनिधि अपने बीच से प्रतिनिधि चुनते थे। इस तरह गांवों के समूह का अपना एक प्रतिनिधि चुना जाता था जो राजधानी में भेजा जाता था। राजधानी में पहुंचनेवाले सारे प्रतिनिधि मतदान के द्वारा केंद्रीय समिति अथवा मंत्रिपरिषद का चुनाव करते थे। इस मंत्रिपरिषद का एक सदस्य राजा, एक उपराजा, एक भण्डारिक अर्थात वित्तमंत्री चुना जाता था। शासन के सारे निर्णय हमेशा बहुमत से ही लिए जाते थे।
वज्जि लोग अपनी इस अनूठी संगठित शासन प्रणाली के चलते शक्ति और व्यापार में बहुत बढ़े चढ़े थे। विख्यात बौद्ध ग्रंथ परिनिर्वाण सूत्र में इसका जिक्र आता है। भगवान बुद्ध ने अपने प्रिय शिष्य आनंद से वज्जियों के बारे में कहा- "जबतक वे अपनी केंद्रीय संस्था की बैठकें करते रहेंगे, आपसी सहमति एवं बहुमत से निर्णय करते रहेंगे, विद्वानों का सम्मान करते रहेंगे, तबतक उनकी प्रगति कोई नहीं रोक सकेगा।"
आइए, अब आते हैं अपने प्रारंभिक प्रश्न पर। जनता के प्रतिनिधि में कौन सी विशेषतायें होनी चाहिए?इसका उत्तर हमें इसी प्राचीनतम गणराज्य की चुनाव प्रणाली में मिलता है।
वज्जि लोग मानते थे कि एक आदर्श जन प्रतिनिधि में चौदह विशेषताएं होनी चाहिए। मान लीजिए, पांच लोगों के बीच किसी एक को अपना प्रतिनिधि चुनना हो तो वे देखते थे कि इन चौदह में से कौन कौन सी बातें उसमें हैं। जिस व्यक्ति में जितने ज्यादा गुण मिलें, बस उसी को चुन लेते थे।
आइये बहुत ही संक्षेप में देखते हैं कि ये चौदह बातें कौन सी थीं।
पहली विशेषता थी देशकाल का ज्ञान। मतलब? नेता को current affairs पता होने चाहिएं। देश विदेश में कौन सी घटनाएं चल रही हैं, ये उसे मालूम होना चाहिए।
दूसरी विशेषता थी दृढता। मतलब ? वह एक विचारधारा पर टिका हो। किसी भय या लालच में अपनी विचारधारा न बदले।
तीसरी चीज़ है कष्टसहिष्णुता। मतलब? अपने लोगों के हित के लिए वो हर कष्ट झेलने को तैयार हो। लोगों की बीमारी,दुख, शोक आदि के मौकों पर आम आदमी के साथ खड़ा रहनेवाला हो।
चौथी विशेषता है सर्वविज्ञानता। मतलब? एक जननायक को विज्ञान और टेक्नोलॉजी के बारे में जानकारी और रुचि होनी चाहिए। यहां एक दिलचस्प बात आती है! वज्जियों का ये लोकतंत्र मूलतः ग्रामीण था।अधिकांश जनप्रतिनिधि rural background या ग्रामीण पृष्ठभूमि से थे। उन्होंने विज्ञान और तकनीक विशेष तौर पर युद्ध विज्ञान की उपेक्षा की। परिणाम? मगध, अवंति जैसे राज्य काफी आगे बढ़ गए। और? जब वैशाली का मगध से युद्ध हुआ तो मगध ने अपनी युद्ध तकनीकों से वैशाली में कोहराम मचा दिया। मगध की महाशिलाकांतक और रथमुसल नामक मशीनें इतिहास में प्रसिद्ध हैं जो एक बार में ही सैकड़ों सैनिकों का संहार करती थीं।
एक जननायक की पांचवी विशेषता है दक्षता। मतलब? उसे विधायी कार्यों अर्थात कानून बनाने में दक्ष होना चाहिए।
छठी विशेषता है उत्साह। मतलब? उसकी उपस्थिति, उसके भाषण से लोगों में जोश आ जाना चाहिए।
सातवीं चीज़ है मंत्रगुप्ति? मतलब? एक जन प्रतिनिधि को सरकारी रहस्य और दस्तावेज़ हमेशा गोपनीय रखने चाहिए। क्यों? क्योंकि इनकी जानकारी से शत्रु राष्ट्र लाभ उठा सकते हैं। आधुनिक युग में भी ये नियम हम देखते हैं। संवैधानिक पदों को ग्रहण करने से पूर्व गोपनीयता की शपथ अनिवार्य होती है। दुनिया भर ने ये नियम शायद वज्जियों से ही सीखा है!
आठवीं विशेषता है एकवाक्यता। मतलब? जनता के सामने वो जो भी बोले, उसे पूरा करके दिखाए।
नौवीं चीज़ है शूरता। मतलब? युद्ध और आक्रमण जैसी परिस्थिति आ जाने पर जननायक को वीरता दिखानी चाहिए। शत्रु को उसी की भाषा में जबाब देना चाहिए। यहां एक दिलचस्प बात है।वीरता के मामले में वज्जियों के नियम स्पष्ट थे। प्राचीन वर्णनों से पता चलता है कि उन्हें अपने शत्रु मृत रूप में ही अच्छे लगते थे। अर्थात? माफी और क्षमा जैसी चीज़ों के लिए उनके पास जगह नहीं थी।
दसवीं विशेषता है भक्तिज्ञान। मतलब? उसे लोगों के धार्मिक रीति रिवाजों का ज्ञान एवं धार्मिक प्रथाओं के प्रति उदार होना चाहिए।
ग्यारहवीं विशेषता है कृतज्ञता। एक जनप्रतिनिधि को हमेशा आम लोगों के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए। क्यों होना चाहिए? क्योंकि लोगों ने उसपर भरोसा करके उसे चुना है।
बारहवीं विशेषता है शरणागत वत्सलता। मतलब? अगर कोई सज्जन व्यक्ति उसके क्षेत्र में आकर व्यापार, नौकरी, पढ़ाई आदि करना चाहे, तो सत्ता में बैठे नेता को उसका संरक्षण और सहयोग करना चाहिए।
तेरहवीं विशेषता है अमर्शित्व। मतलब? जहां भी अपने क्षेत्र में अत्याचार होता दिखे, नेता उसका सक्रिय विरोध करनेवाला हो।
चौदहवीं quality है अचपलता। मतलब? उसे लोगों की बातों एवं सुझावों को सुनने में गंभीर होना चाहिए।
मित्रों,एक बात ध्यान देने की है। इन चौदह विशेषताओं का उल्लेख केवल लोकतांत्रिक प्रतिनिधियों के लिए किया गया है। जिन देशों में राजतंत्र है, वहां राजसी खानदान से संबंधित होना ही शासक की सबसे बड़ी विशेषता मानी जाती है।
तो हमने आज देखा कि दुनिया का सबसे प्राचीन लोकतंत्र किन चीजों के आधार पर अपने प्रतिनिधियों का चयन करता था। उनका राज्य भले ही मिटा दिया गया लेकिन सिद्धांत नहीं मिटे। दो चार अपवादों exeptions को छोड़ दें तो लगभग हर महान शासक ने अपने आपको इन विशेषताओं से परिपूर्ण दिखाया है।आधुनिक युग के बड़े और सफल नेताओं को भी लीजिये।आप पाएंगे कि उनमें ये विशेषताएं मौजूद हैं।
अब अंत में एक बात। क्या हमें इतिहास का लाभ उठाना नहीं चाहिए! क्या हमें इन चौदह विशेषताओं की खोज उन लोगों में नहीं करनी चाहिए जो हमारे जन प्रतिनिधि हैं? क्या एक जागरूक नागरिक बनकर हमें अपने देश को सशक्त नहीं बनाना चाहिए? चलिए, इन सवालों के उत्तर मैं आपके ऊपर ही छोड़ता हूँ।
आज यहीं तक। आपकी अपनी वेबसाइट ashtyaam. com की तरफ से ढेर सारी शुभकामनाएं।
Very good
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