महर्षि वाल्मीकि का नाम भला कौन नहीं जानता! उन्होंने रामायण जैसे महाकाव्य की रचना की, जिसमें करोडों लोग श्रद्धा रखते हैं। उन्हें आदिकवि भी कहा जाता है क्योंकि भाषा के शब्दों को गाने योग्य काव्य के रूप में रचने की शुरुआत उन्होंने ही की थी।
ये तो है उनका सामान्य परिचय। उनके बारे में अनेक कहानियां हैं।अनेक मान्यताएं हैं। सबमें दो बातें common हैं- पहली,उनका प्रारंभिक जीवन उनकी बुरी habits के चलते बहुत बुरा बीता था। दूसरी बात, उन्होंने कठिन परिश्रम एवं लगन से सारी कमियों को conquer किया और अपने समय के सबसे बड़े scholar बने- रामायण जैसी रचना लिखी।आज अष्टयाम डॉट कॉम का यह लेख इन्हीं वाल्मीकि जी पर केंद्रित है।
वाल्मीकि का नाम रत्नाकर हुआ करता था।अपने प्रारंभिक जीवन में साहित्य, कविता,ज्ञान- विज्ञान के बारे में वो कुछ नहीं जानते थे। उनका बचपन घनघोर जंगल में बीता। वो कभी स्कूल- कॉलेज नहीं गए। जवान हुए तो परिवार का बोझ भी उनपर आ पड़ा।आगे जाकर उन्होंने एक ऐसा career चुन लिया जो कहीं से भी ठीक नही था। वो उस जंगल से गुजरने वाले यात्रियों को लूटने लगे। लेकिन कहते हैं न- ईश्वर हर किसी को मौका देता है। वाल्मीकि को नारद नाम का
एक ऐसा यात्री मिला जो हाथ में वीणा लिए हुए एवं ईश्वर का भजन करता हुआ जा रहा था। कहते हैं, रत्नाकर और वाल्मीकि के बीच जो वार्तालाप अथवा interaction हुआ उससे रत्नाकर की लाइफ transform हो गयी।
आइये देखते हैं क्या हुआ होगा दोनों के बीच 😊-
रत्नाकर- अरे ओ यात्री! चल रुक जा वहीं पर।
नारद- मैं क्यों रुकूँ? मैं तो सही रास्ते जा रहा हूँ।तुझे रुकना हो तो तू रुक।
रत्नाकर- देखता नहीं! मेरे हाथ में तलवार है। अगर तूने मेरा कहा न माना तो इसी तलवार से तुझे मार डालूंगा।
नारद- क्या चाहते हो तुम?
रत्नाकर- जो भी धन, रुपया- पैसा तेरे पास है, सब मुझे दे दे।
नारद- मैं एक महर्षि हूँ। धन नहीं रखता। मेरे पास शास्त्रों का ज्ञान है। इसी ज्ञान के कारण सारा संसार मुझे सम्मान देता है।
तू भी मुझे जाने दे अब।
रत्नाकर- ऐसे कैसे जाने दूँ भला। आज सुबह से कोई मिला नहीं।अगर तुझे न लूटा, तो परिवार का गुजारा कैसे होगा?
नारद- देख मेरे पास पैसे तो हैं नही।
रत्नाकर- फिर अपनी वीणा दे। इसी को बेचकर काम चला लूँगा।
नारद- ये वीणा अमूल्य है। इसे सभी जानते हैं। जैसे ही बेचने जाएगा, पकड़ा जाएगा। जैसे ही लोगों को पता चलेगा, तूने एक ऋषि को लूटा है, वो तुझे दंड देंगे।
रत्नाकर- इसका मतलब तू मुझे कुछ नहीं देगा?
नारद- मैं तुझे शास्त्रों का ज्ञान दे सकता हूँ। इसको प्राप्त करने के बाद तेरा जीवन बदल जायेगा। तू संसार की हर चीज़ प्राप्त कर सकेगा।
रत्नाकर- मेरी पढ़ने की उम्र बीत गयी। अब बीबी- बच्चों के लिए ये काम करना मेरी मजबूरी है।
नारद- इस काम को छोड़। इससे तेरे पाप बढ़ेंगे। तेरा future खराब होगा।जब तू पकड़ा जाएगा तो सजा मिलेगी।
रत्नाकर- सजा क्यों मिलेगी? मैं तो ये सब केवल अपने परिवार के लिए करता हूँ।
नारद- अच्छा जा! अपने परिवार से पूछ आ। क्या वो तेरी सजा को अपने ऊपर लेना पसंद करेंगे?जबतक तू नहीं लौटता, तबतक मैं रुकता हूँ।
यहाँ पर कहानी में twist आता है। रत्नाकर जब अपने घरवालों से जाकर बात करता है तो कोई उसके पापों में भागीदार बनने को तैयार नहीं होता।उसे पहली बार ये अहसास होता है कि वो एक गलत path पर है। अब वो वापस नारद के पास आता है। नारद जी उसे कुछ directions देते हैं और वो उनको follow करता है। इसके आगे जो भी हुआ वो पूरी दुनिया ने जाना। युवा रत्नाकर एक डाकू था लेकिन वृद्ध रत्नाकर संसार के सबसे बड़े विद्वानों में से एक महर्षि वाल्मीकि बना।
ये कहानी हमें सिखाती है कि अगर हम एक गलत path पर हैं तो जीवन में कभी भी उसे छोड़कर एक right path को चुन सकते हैं। कठिन परिश्रम से उस क्षेत्र में भी सफल हुआ जा सकता है जो हमारे लिए पूरी तरह नया है। जरा सोचकर देखिये, रत्नाकर ने क्या- क्या नही झेला होगा। अंततः success उन्हें मिलकर ही रही।
आज से तीन दिन बाद 24 अक्टूबर को इन्ही महापुरुष की जयंती है। चलिए, संकल्प करें कि कुछ मिनटों के लिए ही सही, हम इनको याद करेंगे।इन्हें तो नारद जी एक संयोग से ही मिले थे। लेकिन हम किसी ऋषि का इंतजार नही करेंगे बल्कि खुद ही अच्छे मार्गदर्शकों तक पहुचेंगे। चाहे हमारी उम्र कुछ भी हो रही हो, हम वही रास्ता चुनेंगे जो हमारे लिए सबसे अच्छा है।
दोस्तों, उम्मीद है ये लेख आपको पसंद आएगा। आपकी अपनी इस वेबसाइट पर आने वाले हर लेख का उद्देश्य ही यही है- आपको positive thinking के लिए प्रेरित करना।
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