हिमाचल प्रदेश। साल था 1993। एक विमान धर्मशाला की तरफ उड़ा जा रहा था। धर्मशाला मतलब पहाड़ियों के बीच बसा हिमाचल प्रदेश का एक विख्यात पर्यटन स्थल। अचानक पायलट को लगा कि वह रास्ता भूल गया है। सड़क पर अगर कोई रास्ता भूल जाये तो चिंता नहीं होती।पर हजारों फ़ीट ऊपर आसमान में रास्ता भटकने का मतलब है, सीधे अपनी मौत को बुलाना।खैर, ऐसी परिस्थिति में एक काम किया जा सकता है, अपने नीचे देखते रहिये। जहां भी हवाई पट्टी दिखे, बस लैंड कर जाइये।लेकिन निर्जन पहाड़ियों में हवाई पट्टी भला कौन बनाकर रखता है!वो तो धर्मशाला में ही थी अथवा जिला मुख्यालय स्तर के किसी शहर में ही हो सकती थी। अब पायलट तो इस भूभाग से परिचित था नही- अगर होता तो भटकता नहीं न! खैर, मरता क्या न करता!उसने अपने यात्रियों से पूछा- क्या आप ऊपर आसमान से धर्मशाला शहर को पहचान सकते हैं?
अब घबराने की बारी यात्रियों की आयी थी।लेकिन एक यात्री बिल्कुल शांत रहा।कोई शिकन तक नहीं।बोला- अगर क्रैश ही होना है तो चिंता क्यों करूँ!मैं सो जाता हूँ।जगते हुए क्रैश हुआ तो ज्यादा तकलीफ होगी। बात कहने के निराले अंदाज एवं उसकी निश्चिंतता से पायलट का भय भी छूमंतर हो गया। नए सिरे से रास्ता ढूंढा जाने लगा। जल्दी ही एक विमान से संपर्क हो गया और वे सकुशल कुल्लू उतर गए।
क्या आप जानते हैं- मृत्यु को सामने पाकर भी निश्चिंत रहने वाला यह आदमी कौन था? जी हां, आप बिलकुल सही हैं- अटल बिहारी वाजपेयी। जिनकी मुस्कान विरोधियों का विरोध शांत कर देती थी। जिनकी वाणी लोगों के कानों तक नहीं बल्कि हृदय तक पहुचती थी। जिनकी प्रतिष्ठा दलों के साथ दिलों में थी। वही अटल बिहारी वाजपेयी।
बाधाएं आती हैं आएं
गिरे प्रलय की घोर घटाएं
निज हाथों में हँसते हँसते
आग लगाकर जलना होगा
कदम बढ़ाकर चलना होगा
भारत माता के इस सच्चे सपूत का जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में हुआ था।एक अध्यापक का ये पुत्र बचपन से ही कुशाग्रबुद्धि था। कविताओं में रुचि तभी से दिखने लगी थी। वाद - विवाद प्रतियोगिताओं में जब भी भाग लेते, सामने वाला इनके ही तर्को में उलझकर भाग जाता!
आगे जाकर इन्होंने वकील बनना चाहा। कानपुर में LLB की पढ़ाई शुरू की।लेकिन इनके पिता जी ने पता नही क्या सोचा! वो भी आ गए इन्हीं के course में!! समाज मे ऐसे cases दुर्लभ हैं, जब पिता- पुत्र की जोड़ी एक साथ, एक ही course में पढ़ाई करे। ऐसे मामलों का जो अंत होता है, अंत में वही हुआ😊। अटल जी इस course से ही टल गए! उन्होंने सामाजिक कार्यों में पूरा समय देना शुरू कर दिया। श्यामा प्रसाद मुखर्जी एवं दीन दयाल उपाध्याय जैसे बड़े नेताओं ने जल्दी ही इनकी प्रतिभा को पहचान लिया। कौन दीन दयाल उपाध्याय? वही जिनके नाम पर मुगलसराय स्टेशन का नाम बदला गया है!
बड़े नेताओं की संगति में हमारे अटलजी जल्दी ही एक प्रखर वक्ता, लेखक, संपादक एवं सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर उभरे।ठीक वैसे ही जैसे आग में तपकर सोना चमकदार एवं शुद्ध बन जाता है।
विद्वत्ता, हाजिरजवाबी, याददाश्त तो उनकी लाज़वाब थी। 1955 में उन्होंने सांसद बनने की ठानी। लेकिन पहला चुनाव ही हार गए।चुनाव में तो हार मिली पर इसके नतीज़े में उन्हें चुनाव जीतने के लिए जरूरी अनुभव मिल गया।ये अनुभव उनके बहुत काम आया। आगे वो कभी किसी से कोई चुनाव नहीं हारे। लोकसभा में गए।राज्यसभा में गए। मंत्री भी बने। प्रधानमंत्री भी बने। सब जगह एक समानता देखने को मिली। वे जिस पद पर बैठे, वह पद ही इनसे गौरवान्वित हुआ।ये शिखर पर बैठकर भी ज़मीन से जुड़े रहे।
अटल जी का सपना था। भारत इतना मजबूत हो कि कोई देश हमे दबा न सके। इसके लिए परमाणु शक्ति बनना जरूरी था।लेकिन इसके लिए बहुत तैयारी चाहिए थी। देश मे जहाँ भी ये हो सकता था, दुनिया नज़रें गड़ाकर बैठी थी। अमेरिका, चीन, ब्रिटेन तो मानों कसम खाकर ही बैठे थे कि भारत को परमाणु शक्ति नहीं बनने देंगे। लेकिन अटल जी अपने संकल्प से टलनेवाले नहीं थे। उन्होंने मई 1998 में पोखरण में परमाणु विस्फोट कर ही डाला।भारत के तमाम दुश्मन इसके झटकों से हिल गए!
अटलजी स्वाधीन भारत के पहले ऐसे सत्ताप्रमुख थे जिन्होंने सड़कों को महत्वपूर्ण मानकर उनका विकास किया।स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना से हमारे चारों महानगर आपस मे जुड़ गए।
हमेशा शान्ति और सौम्यता से काम लेनेवाले अटलजी ने एक बार अपना रौद्र रूप भी दिखाया। जी हां, कारगिल युद्ध में। अगर आपने इसपर बनी LOC फ़िल्म देखी है तो आप समझ सकते हैं कि उस युद्ध मे एक भी बात हमारे पक्ष में नही थी। लेकिन भारत के सैनिकों ने भी साबित कर दिखाया कि वो आग का दरिया उसमें डूबकर भी पार कर सकते हैं। अटलजी की कूटनीति के सामने शत्रु के सारे किले ध्वस्त हो गए।
अटलजी का महत्व इस बात के लिए सबसे अधिक है कि उन्होंने देश को एक vision दिया। वो कहा करते थे-" भारत को लेकर मेरी एक दृष्टि है, ऐसा भारत जो भूख, भय, निरक्षरता एवं अभाव से मुक्त हो'। उनकी सारी योजनाएं इसी एक वाक्य के इर्द-गिर्द घूमती हैं।
जीवन भर जो अजेय रहे, अंत में बिगड़ते हुए health की वजह से उन्हें सार्वजनिक जीवन से अवकाश लेना पड़ा। काल के कपाल पर भी हस्ताक्षर करने की शक्ति रखनेवाला देश का यह सपूत 16 अगस्त 2018 को मरकर भी अमर हो गया।लेकिन उनके भाषण, उनकी कविताएं, उनके लेख इंटरनेट पर सहज ही उपलब्ध हैं।उनके विचार हमेशा हमें हालात से जूझने एवं विजयी बनने की प्रेरणा देते हैं।
इन्हीं पंक्तियों को देख लीजिए-
भरी दोपहरी में अंधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें
बुझी हुई बाती सुलगाएँ
आओ फिर से दिया जलाएं
अब घबराने की बारी यात्रियों की आयी थी।लेकिन एक यात्री बिल्कुल शांत रहा।कोई शिकन तक नहीं।बोला- अगर क्रैश ही होना है तो चिंता क्यों करूँ!मैं सो जाता हूँ।जगते हुए क्रैश हुआ तो ज्यादा तकलीफ होगी। बात कहने के निराले अंदाज एवं उसकी निश्चिंतता से पायलट का भय भी छूमंतर हो गया। नए सिरे से रास्ता ढूंढा जाने लगा। जल्दी ही एक विमान से संपर्क हो गया और वे सकुशल कुल्लू उतर गए।
क्या आप जानते हैं- मृत्यु को सामने पाकर भी निश्चिंत रहने वाला यह आदमी कौन था? जी हां, आप बिलकुल सही हैं- अटल बिहारी वाजपेयी। जिनकी मुस्कान विरोधियों का विरोध शांत कर देती थी। जिनकी वाणी लोगों के कानों तक नहीं बल्कि हृदय तक पहुचती थी। जिनकी प्रतिष्ठा दलों के साथ दिलों में थी। वही अटल बिहारी वाजपेयी।
बाधाएं आती हैं आएं
गिरे प्रलय की घोर घटाएं
निज हाथों में हँसते हँसते
आग लगाकर जलना होगा
कदम बढ़ाकर चलना होगा
आगे जाकर इन्होंने वकील बनना चाहा। कानपुर में LLB की पढ़ाई शुरू की।लेकिन इनके पिता जी ने पता नही क्या सोचा! वो भी आ गए इन्हीं के course में!! समाज मे ऐसे cases दुर्लभ हैं, जब पिता- पुत्र की जोड़ी एक साथ, एक ही course में पढ़ाई करे। ऐसे मामलों का जो अंत होता है, अंत में वही हुआ😊। अटल जी इस course से ही टल गए! उन्होंने सामाजिक कार्यों में पूरा समय देना शुरू कर दिया। श्यामा प्रसाद मुखर्जी एवं दीन दयाल उपाध्याय जैसे बड़े नेताओं ने जल्दी ही इनकी प्रतिभा को पहचान लिया। कौन दीन दयाल उपाध्याय? वही जिनके नाम पर मुगलसराय स्टेशन का नाम बदला गया है!
बड़े नेताओं की संगति में हमारे अटलजी जल्दी ही एक प्रखर वक्ता, लेखक, संपादक एवं सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर उभरे।ठीक वैसे ही जैसे आग में तपकर सोना चमकदार एवं शुद्ध बन जाता है।
विद्वत्ता, हाजिरजवाबी, याददाश्त तो उनकी लाज़वाब थी। 1955 में उन्होंने सांसद बनने की ठानी। लेकिन पहला चुनाव ही हार गए।चुनाव में तो हार मिली पर इसके नतीज़े में उन्हें चुनाव जीतने के लिए जरूरी अनुभव मिल गया।ये अनुभव उनके बहुत काम आया। आगे वो कभी किसी से कोई चुनाव नहीं हारे। लोकसभा में गए।राज्यसभा में गए। मंत्री भी बने। प्रधानमंत्री भी बने। सब जगह एक समानता देखने को मिली। वे जिस पद पर बैठे, वह पद ही इनसे गौरवान्वित हुआ।ये शिखर पर बैठकर भी ज़मीन से जुड़े रहे।
अटल जी का सपना था। भारत इतना मजबूत हो कि कोई देश हमे दबा न सके। इसके लिए परमाणु शक्ति बनना जरूरी था।लेकिन इसके लिए बहुत तैयारी चाहिए थी। देश मे जहाँ भी ये हो सकता था, दुनिया नज़रें गड़ाकर बैठी थी। अमेरिका, चीन, ब्रिटेन तो मानों कसम खाकर ही बैठे थे कि भारत को परमाणु शक्ति नहीं बनने देंगे। लेकिन अटल जी अपने संकल्प से टलनेवाले नहीं थे। उन्होंने मई 1998 में पोखरण में परमाणु विस्फोट कर ही डाला।भारत के तमाम दुश्मन इसके झटकों से हिल गए!
अटलजी स्वाधीन भारत के पहले ऐसे सत्ताप्रमुख थे जिन्होंने सड़कों को महत्वपूर्ण मानकर उनका विकास किया।स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना से हमारे चारों महानगर आपस मे जुड़ गए।
हमेशा शान्ति और सौम्यता से काम लेनेवाले अटलजी ने एक बार अपना रौद्र रूप भी दिखाया। जी हां, कारगिल युद्ध में। अगर आपने इसपर बनी LOC फ़िल्म देखी है तो आप समझ सकते हैं कि उस युद्ध मे एक भी बात हमारे पक्ष में नही थी। लेकिन भारत के सैनिकों ने भी साबित कर दिखाया कि वो आग का दरिया उसमें डूबकर भी पार कर सकते हैं। अटलजी की कूटनीति के सामने शत्रु के सारे किले ध्वस्त हो गए।
अटलजी का महत्व इस बात के लिए सबसे अधिक है कि उन्होंने देश को एक vision दिया। वो कहा करते थे-" भारत को लेकर मेरी एक दृष्टि है, ऐसा भारत जो भूख, भय, निरक्षरता एवं अभाव से मुक्त हो'। उनकी सारी योजनाएं इसी एक वाक्य के इर्द-गिर्द घूमती हैं।
जीवन भर जो अजेय रहे, अंत में बिगड़ते हुए health की वजह से उन्हें सार्वजनिक जीवन से अवकाश लेना पड़ा। काल के कपाल पर भी हस्ताक्षर करने की शक्ति रखनेवाला देश का यह सपूत 16 अगस्त 2018 को मरकर भी अमर हो गया।लेकिन उनके भाषण, उनकी कविताएं, उनके लेख इंटरनेट पर सहज ही उपलब्ध हैं।उनके विचार हमेशा हमें हालात से जूझने एवं विजयी बनने की प्रेरणा देते हैं।
इन्हीं पंक्तियों को देख लीजिए-
भरी दोपहरी में अंधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें
बुझी हुई बाती सुलगाएँ
आओ फिर से दिया जलाएं
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