एक परिचित मिले।बोले- आजकल दुखी लोगों की संख्या बढ़ती ही जा रही है।कारण? दुख है। कौन सा दुख? मन का दुख।
सही बात है। ये महसूस भी होता है। मन प्रसन्न हो तो सब अच्छा लगता है।दुखी हो तो...।
दुख के मुख्य तीन प्रकार है। दैहिक दुख। ये हमारे शरीर मे होता है। जैसे बुखार, दर्द, बीमारी। दूसरा है भौतिक। ये दुख जब आता है तो हमारे साथ और लोगों को भी पीड़ित करता है। जैसे भूकंप, महामारी, भ्रष्टाचार। तीसरा है मानसिक।मन का दुख।उदासी, अशांति,कुछ खोने का डर, किसी घटना का डर।
ये तो हुए प्रकार। अब इनका उपाय। दैहिक कष्ट का उपाय है दवाइयां। डॉक्टर।वैद्य।सही भोजन।स्वस्थ जीवनशैली।
दैविक कष्ट। उपाय है शक्ति।अपने आप को मजबूत बनाइये। बलवान व्यक्ति के जीतने की संभावना ज्यादा होती है।
मानसिक कष्ट का उपाय।कष्ट के कारण को ढूंढें। कारण दूर होगा तभी दुख मिटेगा। उदाहरण।एक विद्यार्थी है। उसने परीक्षा दी।फेल हो गया। कुछ ने ताने दिए। कुछ ने मजाक भी उड़ाया। लो- हो गया कष्ट। अब चलें उपाय की ओर। उपाय क्या है? पहले कारण ढूँढिये। क्या परीक्षा में असफल होना कष्ट का मूल कारण है? नहीं। उसका मजाक उड़ाना? नहीं।तो? मूल कारण ये है कि लोगों ने उसकी क्षमता पर संदेह किया।लेकिन ये आधा ही कारण है। फिर? वो विद्यार्थी कुछ लोगों पर भरोसा करता था।किनपर? अपने माँ- बाप पर।अपने भाई- बहनों पर।अपने नजदीकी दोस्तों पर।ये सारे लोग चुप थे जब कोई परीक्षा उसे फेल घोषित कर चुकी थी। इस बात ने उसके दुख को सम्पूर्ण बना दिया। अगर ये सारे लोग उसके कंधों पर अपने भरोसे का हाथ रख देते तो उसे असफलता कड़वी नहीं लगती।याद रखिये।विश्वास और संदेह संक्रामक होते हैं। अगर दस लोग मिल जाएं। और आपके ऊपर अपना विश्वास प्रकट करें। तो आपको अपने अंदर एक शक्ति महसूस होगी।आत्मविश्वास प्रबल होगा।
इसका उल्टा भी सच है। अगर आपकी क्षमता पर लोग संदेह करें तो? आपका उत्साह शंका में बदल जायेगा। सफलता दूर हो जाएगी।
ये एक बड़ा रहस्य है। power of motivation।प्रोत्साहन की शक्ति। अगर हमें किसी गुण के लिए लगातार प्रोत्साहित किया जाए तो हमारे अंदर उसका तेजी से विकास होता है। एक अच्छा गुरु यही तो करता है! हर व्यक्ति के अंदर एक विशिष्टता होती है। अगर उसे पहचान लें।प्रोत्साहित करें। तो उस क्षेत्र में वह सफल हो जायेगा। क्यों? अपने उस विशिष्ट गुण के चलते।
महाभारत की कहानी हम जानते हैं। सबसे बड़ा धनुर्धर अर्थात बाण चलाने वाला कौन था? अर्जुन? नहीं। वह कर्ण था-सूर्यपुत्र कर्ण। उसके पास कवच कुंडल थे।वह अजेय था। लेकिन वह अर्जुन से परास्त हो गया। क्यों? आइये देखते हैं।
महाभारत युद्ध के लिए कर्ण ने बड़ी- बड़ी योजनाएं बना रखी थीं। जीतना निश्चित था। लेकिन एक चीज़ नहीं थी। सारथी।उसे अपने रथ के लिए सुयोग्य सारथी नहीं मिला था। सुयोग्य मतलब? जिसे शस्त्रों का ज्ञान हो, अश्वों का ज्ञान हो, युद्ध के व्यूहों से जो परिचित हो, जो घावों की चिकित्सा जानता हो, जो घनघोर लड़ाई में भी शांत रह सके। ऐसा ही व्यक्ति कर्ण जैसे महारथी का सारथी हो सकता था। कौरव सेना में ऐसा एक ही योद्धा था- शल्य। कर्ण ने उनको मना लिया।
लेकिन पांडवों ने यहां चालाकी दिखाई। शल्य उनके मामा थे। जाकर मिले। अपने मामा शल्य से वचन लिया- कर्ण को हमेशा उसकी कमियां दिखाकर हतोत्साहित करते रहें।
शल्य ने वचन निभाया। जब भी कर्ण उत्साहित दिखता, वो उसे उसके अपमान, असफलताओं, एवं हार की याद दिलाते। सूत पुत्र होने का ताना देते। विराट युद्ध, गंधर्व युद्ध, गुरु परशुराम का श्राप आदि अनेक घटनाएं याद दिलाते रहते जब कर्ण को अपमानित होना पड़ा था।
हम जानते हैं कि शल्य की इस negative counselling का प्रभाव क्या हुआ। कर्ण जैसा योद्धा अपनी पूरी क्षमता से नहीं लड़ सका। प्रचंड युद्ध के बीच अपनी युद्धविद्या भूल गया।
यहीं इसके विपरीत देखिये। अर्जुन को कैसा सारथी मिला!कृष्ण जैसा। उन्होनें युद्ध से भागते अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया।जीतने की प्रेरणा दी।
ये कहानी हमें भी कुछ सिखाती है। अगर हमारा कोई अपना फेल होता है तो उसके कंधे पर आपका हाथ जरूर होना चाहिए। वो भले ही कुछ न बोले।पर उसे आपकी जरूरत है। असफलता बहुत कष्ट देती है। लेकिन जब अपने साथ हों तो अपने अंदर का भरोसा बना रहता है।
एक चीज़ और। कभी किसी की योग्यता की, उसके गुण की आलोचना न करें। अगर संभव हो तो प्रोत्साहन के दो चार शब्द दें। आपके ये शब्द किसी का जीवन बना सकते हैं।
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