दुनिया के हर देश में कोई न कोई पर्व ऐसा जरूर मिल जाएगा जो अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है।स्पेन का Las fallas। फ्रांस का festival of lights जो दिसम्बर में होता है।चीन का Lantern festival।कोई न कोई पर्व आप हर देश में पाएंगे।
हर परंपरा का एक इतिहास होता है।दीपावली का भी है। एक नहीं अनेकों मान्यतायें हैं।
एक लोककथा इसे भगवान राम से जोड़ती है।वे जब रावण पर विजय प्राप्त करके अपनी राजधानी अयोध्या लौटे
तो लोगों ने दीप जलाकर खुशियां मनायीं।एक अन्य मान्यता इसे भगवान कृष्ण से जोड़ती है।उन्होंने नरकासुर को मारा।उसे नरकासुर कहने का कारण था- उसका राज्य अच्छे लोगों के लिए नरक के समान कष्टकारी था।धर्म को मानने वालों को वह बहुत कष्ट देता था। उसे एक फोबिया या डर था- कोई स्त्री उसे मार देगी।नतीजा? उसे जिस स्त्री से खतरा महसूस होता, वह उसे जेल में डाल देता! उसकी इस सनक के चलते लाखों प्रतिभाशाली लोग जेलों में कैद थे जिनमें कई हजार स्त्रियां भी थीं।उसकी सेना बहुत शक्तिशाली थी।किसी की हिम्मत नहीं थी कि नरकासुर से टकरा सके! लेकिन कृष्ण ने हिम्मत दिखाई।उन्होंने उसके मानसिक भय का लाभ उठाया।अपनी पत्नी सत्यभामा को सेनापति बनाकर युद्ध में आये।नरकासुर का मानसिक भय उसकी मानसिक शक्ति पर हावी हो गया।उसे भयभीत देखकर उसकी सेना का मनोबल गिर गया। सत्यभामा की वीरता और कृष्ण की रणनीति- दोनों ने मिलकर अत्याचार के इस प्रतीक को मिटा दिया। सारे कैदी मुक्त हो गए। इस विजय के अगले दिन लोगों ने दीप जलाकर नए युग का स्वागत किया।
भारत की तरह हर देश में उसके प्रकाश पर्व के पीछे ऐसी ही कथाएं मिलती हैं।लेकिन हर जगह एक चीज़ common है-अन्धकार का नाश करने की ईच्छा। आप खुद देखिये।दीपावली में हम अपने घर का कोई कोना, छत, बालकनी,सीढियां, कुछ भी बिना प्रकाशित किये नहीं छोड़ते। हर जगह दीप जलाते हैं।
आगे जाकर हमारे पूर्वजों ने प्रकाश के इस पर्व को धन और समृद्धि से जोड़ा। अंधकार को प्रकाश से जीतने की यह प्रक्रिया समृद्धि अथवा लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने का साधन बनी।मिट्टी के दीपक,मिट्टी की मूर्तियां, मिट्टी के खिलौने, मिट्टी के बर्तन- मिट्टी से जुड़ा ये पर्व बहुत से लोगों की जीविका का साधन भी बना रहा!
समय बदला।बिजली के दीप, झालरें आये।सस्ते, आधुनिक! लेकिन खुशी है!हमारे मिट्टी के दीये खत्म नहीं हुए। क्यों? एक छोटा प्रयोग करिये! रात को कमरे में जलते हुए बल्ब को देखें।अब बल्ब ऑफ कर दें।अब मिट्टी का एक दिया जलाइए। दो मिनट देखिये!आगे बताने की जरूरत नहीं।आपको अहसास हो जाएगा कि उत्सव में मिट्टी का दिया ही क्यों जलता है।
आधुनिकता की आंधी आतिशबाजी और पटाखे भी लेकर आई।हानिकारक रसायनों से बने ये पटाखे प्रदूषण तो फैलाते ही हैं। साथ ही बीमार एवं बुजुर्ग लोगों को disturb भी करते हैं। लेकिन भारतीय समाज की ये अनूठी विशेषता है कि यहां हानिकारक परंपराएं ज्यादा दिन नहीं टिकतीं। वो दिन दूर नहीं जब प्रदूषण रहित ग्रीन पटाखे हमारे सामने होंगे!
अंत में संस्कृत का एक श्लोक जिसे हिन्दू परंपरा के अनुसार दीप जलाते समय पढ़ा जाता है-
शुभं करोति कल्याणं, आरोग्यम धनसंपदा।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योति: नमोस्तुते।।
ये हमें दीप जलाने के फायदे बताता है। कौन से? ये कल्याण करता है।रोगमुक्त करता है।समृद्धि देता है। कुबुद्धि का नाश करके अच्छे कार्यों में लगाता है।ये दिव्यज्योति जिस परमसत्ता का प्रतीक है, उसे नमस्कार।
आप सबों के जीवन में भी खुशियों के दीप जलते रहें,ऐसी शुभकामनाएं एवं अष्टयाम डॉट कॉम की तरफ से शुभ दीपावली!
Comments
Post a Comment