भारत का सर्वाधिक प्राचीन मंदिर अर्थात most ancient temple कहाँ है ? इसका उत्तर देश के हर हिस्से में अलग अलग मिलता है। महाबलीपुरम,कैलाशनाथ,तुंगनाथ - हर राज्य में कोई न कोई उत्तर मिलेगा। क्यों ? क्योंकि लोगों को लगता है की धर्म की शुरुआत उनके यहाँ से ही हुयी है ! ये गौरव का विषय माना जाता है।
आज हम ऐसे ही एक मंदिर के बारे में जानेंगे जिसे कई इतिहासकार भारत का सबसे प्राचीन मंदिर मानते हैं। मुंडेश्वरी देवी का ये मंदिर कैमूर की पहाड़ियों में स्थित है।ये मंदिर कब बना, इसका कोई सटीक प्रमाण नहीं लेकिन उन प्राचीन यात्रियों के साक्ष्य जरूर मिल जाते हैं जो कभी यहां आए थे।यहां श्रीलंका के एक बौद्ध शासक की मुद्रा मिली है जो ईसा पूर्व पहली सदी में राज्य करता था।इससे दो बातें पता चलती हैं- आज के दो हजार साल पहले भी यहां तीर्थस्थल था।दूसरा ये कि यहां बौद्ध परंपरा का भी प्रभाव था।अब एक और तथ्य। ये मंदिर राजा उदयसेन ने बनवाया- इसका एक शिलालेख मिला है। इनपर काफी शोध हुए हैं।वे पहली सदी में कुषाण शासकों के अधीन राज्य करते थे। 1900 साल पूर्व!मतलब साफ है।ये स्थल सभ्यता के आरंभ से ही आस्था का केंद्र है।
ये मंदिर एक ऊंची पहाड़ी पर है।608 फ़ीट ऊँची पहाड़ी ।जंगल से घिरा।पहाड़ी की चढ़ाई और जंगल की सैर- इसका आनंद शब्दों में नहीं कहा जा सकता! और एक बात- आपकी नजर जिधर भी जाएगी-प्राचीनता का अहसास होगा।धर्म मे आस्था रखनेवालों के लिए तो यह एक अलौकिक जगह है।
भारत में ऐसी बहुत कम जगहें हैं जहाँ एक साथ ये सब उपलब्ध हैं।
यहाँ जाने के लिए आपको सबसे पहले कुदरा पहुँचना होगा।ये शहर ग्रैंड कॉर्ड रेलवे लाइन पर है। NH 2 से भी आप यहाँ तक पहुँच सकते हैं।यहां से मंदिर तक सीधी सड़क जाती है।
पहाड़ी के नीचे से मंदिर तक पहुँचने के लिए सीढियां बनी हैं।अगर आप पैदल न चलना चाहें तो गाड़ी से पहाड़ी के ऊपर तक जा सकते हैं।
ध्यान रखें कि यहां नवरात्रि एवं पर्व त्योहारों के मौके पर काफी भीड़ होती है।
अब बात यहां की विशिष्टता की।यह मंदिर अष्टकोणीय है।पूरी तरह पत्थरों से निर्मित है।ऐसे बड़े-बड़े पत्थरों को कैसे लाया गया होगा-ये आश्चर्य की बात है!मंदिर के भीतर मुंडेश्वरी देवी एवं शिवलिंग स्थापित हैं।शिवलिंग के चार मुख हैं जो इसे विशिष्ट बनाता है।अगर पुजारियों की मानें तो अथर्ववेद में इस तरह के कोणीय मंदिरों का जिक्र आता है।मंदिर की छत ध्वस्त हो गयी थी जिसे नए सिरे से बनाया गया है।मंदिर के चारों तरफ मूर्तियां देखने को मिलती हैं।
ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि यह मंदिर किसी प्राकृतिक आपदा जैसे भूकंप से क्षतिग्रस्त हुआ होगा। लेकिन आज भी इसका शिल्प अद्वितीय है, बहुत ही मनमोहक है। आज के दो हजार साल पहले की यह शिल्पकला एवं technology आज के वैज्ञानिकों के लिए भी शोध का विषय है।
इस जगह की एक और विशिष्टता है। यहाँ शुरू से ही अहिंसक बलि की प्रथा है।स्थानीय लोगों के अनुसार बकरे पर चावल छिड़ककर ही बलि को पूरा मान लिया जाता है।मतलब? शक्ति के स्थल में अहिंसा को महत्व दिया जाना काफी गहन अर्थ रखता है।इससे पता चलता है कि यह वैष्णव और बौद्ध लोगों की आस्था का भी केंद्र था।
धार्मिक मान्यताएं अपनी जगह हैं।लेकिन इस स्थान पर छायी रहनेवाली शांति,पहाड़ी के शिखर पर बहती शीतल वायु,पक्षियों का कलरव और प्राचीन मूर्तियों का सानिध्य (proximity), ये सब मिलकर आपको अलग ही दुनिया में ले जाते हैं। अगर आप जाड़े के मौसम में यहाँ जाएं तो यहां की गुनगुनी धूप आपके आनंद को कई गुना बढ़ा देगी।परिवार के साथ पिकनिक मनाने के लिए यह एक अच्छा स्थान है।
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आगे से ये पंचकोणीय ढांचा लगता है।प्रवेश द्वार के दोनों तरफ द्वारपाल एवं दीवारों पर गवाक्ष जैसी संरचनाओं को देखा जा सकता है। |
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ये एक चक्र या कमल जैसी आकृति है, जो खंडित है।सीधी रेखा में कटाव को देखकर ऐसा लगता है जैसे इसे काटा गया हो। ऊपर दाएं कोने में एक युग्म या couple की आकृति है जो संभवतः शिव और शक्ति की हो सकती हैं। शायद!क्योंकि ये मेरा अनुमान ही है! |
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एक समय ये मंदिर बहुत भव्य रहा होगा।! |
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जो सभ्यता हजारों साल पहले ऐसी कलात्मक मूर्तियां बनाती थी, सोचिये कितनी विकसित रही होगी! |
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ये स्तम्भ किसी मंडप या भवन का हिस्सा हो सकते हैं जो मंदिर के पास रहा होगा। |
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जहां भी नज़र जाती है,आपको बिखरी हुई मूर्तियां दिखेंगी।क्या इन्हें अच्छे से नहीं रखा जाना चाहिए? |
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मंदिर की जानकारी देता बोर्ड।इसमें कहा गया है कि ये 7वी सदी में निर्मित है।ये जानकारी पुरानी है। |
Thanks sir jankari ke liye
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