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Showing posts from 2019

शिवरुद्राष्टक: महादेव का अमोघ स्रोत्र

देवाधिदेव महादेव का योगी स्वरुप को दर्शाता चित्र  मित्रों, आप लोगो के द्वारा दिया जा रहा प्रेम और स्नेह मुझे विश्वास दिला रहा है कि यह वेबसाइट आपकी उम्मीदों के अनुसार कार्य कर पा रही है। पिछले दिनों मैंने श्री कागभुशुण्डि जी के बारे में लिखा था। उसमें एक जगह  भगवान महादेव की अमोघ स्तुति शिवरूद्राष्टक के बारे में लिखा गया था जिसका पाठ करने से  भगवान शिव की कृपा तुरंत प्राप्त होती है तथा हमारा मन-मष्तिष्क सकारात्मक ऊर्जा से भर उठता है। आपमें से अनेक पाठकों के अनुरोध मुझे प्राप्त हो रहे हैं कि इस  स्त्रोत के बारे में विस्तृत रूप से लिखूं। यकीन मानिए।मैंने लिखना चाहा, पर हिम्मत नहीं जुटा पाया। शिव की भक्ति को शब्दों में समेटना असंभव है।मैंने सारे अनुरोधों को हाथ जोड़कर किनारे कर दिया। लेकिन, एक पाठक ने गजब का आग्रह कर डाला! उन्होंने कहा -" जो जी में आये,बस लिख डालो!जबतक लिखोगे, शिव का ही स्मरण होगा! जो भी लोग तुम्हारा लिखा पढ़ेंगे, उतनी देर शिव को ही याद करेंगे!!शिव कृपा से ही उनका स्मरण करने का मौका मिलता है।" उनकी बात मुझे अकाट्य लगी। महादेव को याद करके मै...

खजुराहो : चन्देलों की गौरव गाथा Khajuraho: The Pride Epitome of Chandela Kings

मित्रों, सबसे पहले आप सब का आभार। आपने अपनी इस वेबसाइट को बहुत प्यार दिया है। आइये।आज खजुराहो चलते हैं। यह बड़ा ही विशिष्ट स्थल है।इसके नाम से ही कुछ लोग नाक-भौं सिकोड़ने लगते हैं।वहीं कुछ लोगों के होठों पर मुस्कान आ जाती है। ऐसा क्यों है?ऐसा इस वजह से है कि हम भारतवासियों ने कभी खजुराहों को अपनी नजर से देखा ही नहीं।विदेशी लोग यहां बड़ी संख्या में आते हैं। यहां के बारे में विदेशियों ने बहुत कुछ लिखा भी है! और हम भारतवासी उनकी बातों पर भरोसा करके उनके नजरिये से ही इस ऐतिहासिक स्थल को देखते आये हैं।त्याग और आध्यात्मिकता का संदेश देने वाले यहां के मंदिरों को विदेशी लेखकों के प्रभाव में आकर हम भोगवादी संस्कृति का पोषक मान बैठे हैं! चलिए, आज की यात्रा हम एक अलग नजरिये के साथ करेंगे।यहां के बारे में पूरा सच जानेंगे जो अभी तक अधिकांश लोगों की नजर से ओझल रहा है। बस आप मेरे साथ बने रहें। पहले कुछ इतिहास की बात करते हैं जिसे हम इसी लेख में आगे जाकर वर्तमान से भी जोड़ेंगे। हजार साल पहले की बात है। उस समय भारत सैंकड़ों  छोटे-बड़े राज्यों में बं...

श्रीकागभुशुंडि::विद्रोह से समर्पण तक की महागाथा Shrikagbhushundi:: The greatest Journey from Suspicion to Devotion

दोस्तों, विश्वास है कि आपकी यह वेबसाइट www. ashtyaam. com आपके लिए उपयोगी सिद्ध हो रही है।इसकी सफलता के पीछे आप लोगों का ही प्रेम और स्नेह है। आइये, आज जानते है श्री कागभुशुण्डि जी के बारे में। Let us know about sri kagbhusundi ji who is regarded as one of the biggest devotees and preachers of Sriram katha! श्रीरामकथा के इस पात्र की चर्चा बहुत कम होती है। लेकिन वह उन गिने चुने पात्रों में हैं जिन्होंने सम्पूर्ण विश्व में रामकथा के प्रचार- प्रसार के लिए नींव के पत्थर की तरह कार्य किया है। साधारण लोग तो रामकथा का एक कणमात्र ही जानने से सभी दुखों से मुक्त हो जाते हैं। आपाधापी से भरे जीवन में उन्हें रामकथा का मर्म समझ पाने का अवसर ही प्राप्त नहीं होता! लेकिन कागभुशुण्डि जैसे महापुरुष इस कथा के मर्म को जानते हैं। उनका  चरित्र हर युग में लोगों को रामकथा में रुचि लेने को प्रेरित करता है। आइये, शुरुआत एक अनूठे सवाल से करें। बताइए-" श्रीरामचंद्र जी ने इस धरती पर कितनी बार अवतार लिया?" "एक बार ?" " नहीं" " फिर कितनी बार?" "असंख्य बार...

सम्राट भरत: जिन्होंने बनाया हमारा भारत !Emperor Bharat: who built The Indian Nation

सम्राट भरत की जन्मस्थली कण्व आश्रम में मौजूद मंदिर दोस्तों, आज हम बात करेंगे सम्राट भरत की।उन महान शासक के बारे में जिनके नाम पर हमारे देश का नाम भारत रखा गया। सम्राट भरत ने अलग अलग फैले आर्यावर्त के कबीलों को एक सूत्र में बांधकर एक सार्वभौमिक राष्ट्र बनाया। आम आदमी के उत्थान पर केंद्रित नीतियां बनायीं। यह मर्यादा बनाई कि राजा ईश्वर का एक प्रतिनिधि है जिसका कार्य जनता  की सुरक्षा और उसका विकास करना है।चक्रवर्ती सम्राट भरत का साम्राज्य हिमालय से लेकर समुद्र के बीच फैला था। यहां की संतानों को भारती अथवा भारतीय कहे जाने की परंपरा तभी से शुरू हुई, जो आज भी जारी है। भारत के इस महान चक्रवर्ती सम्राट का जन्म कण्वाश्रम में हुआ था। उनका लालन पालन महान ऋषि कण्व के सान्निध्य में हुआ। कण्व ऋषि के इस आश्रम का वर्णन स्कन्द पुराण एवं महाकवि कालिदास की रचनाओं में विस्तृत रूप से आता है। आज हम इसी पावन स्थली कण्व आश्रम की चर्चा करेंगे जहां जाना हर भारतीय के लिए गर्व का विषय होना चाहिए। लेकिन वहां जाकर मुझे जो दिखा, एक भारतीय के तौर पर हम सभी को बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करता है। शुरुआत...

श्रीहनुमान चालीसा: योग के संदर्भ में परिचय Srihanuman Chalisa: Understanding in Yogic context

मित्रों, आज हम चर्चा करेंगे उस चौपाई की जिससे श्रीहनुमान चालीसा शुरू होती है। " जय हनुमान ज्ञान गुन सागर जय कपीश तिहुँ लोक उजागर।।" आइये , अब इसका शाब्दिक अर्थ समझें। " उन हनुमान जी की जय हो, जो ज्ञान और गुणों के सागर हैं। कपियों के अधिपति अर्थात हनुमानजी की जय हो जो तीनों लोकों में उजागर अर्थात प्रसिद्ध हैं" मित्रों, अब हम इसके भावार्थ को देखेंगे। एक एक शब्द में छिपे गहन अर्थ को समझने का प्रयास करेंगे। सबसे पहले " जय हनुमान" कहकर हनुमानजी की जयकार की गई है। ऐसा क्यों? आइये एक उदाहरण से समझें। क्या आप किसी राजनीतिक रैली में गए हैं! वहां क्या होता है? जैसे ही कोई बड़े नेता आते हैं, जनता जिंदाबाद के नारे लगाती है।हर तरफ जोश ही जोश दिखने लगता है! ऐसा क्यों किया जाता है? ऐसा इसलिए किया जाता है कि नेता अथवा नायक को उसके बल का भान कराया जा सके। जब किसी को अपनी शक्तियों के ऊपर विश्वास हो, तभी वह किसी अभियान को उचित दिशा दे सकता है एवं जनसमूह का नेतृत्व कर सकता है। नायक जब अपनी शक्तियों पर भरोसा करते हुए जनसामान्य का आह्वान करता है तो उसका जो...

आइये, समझें वैदिक शिक्षा प्रणाली को: Let us understand Vedic Education System

दोस्तों, विश्वास है आप सभी सकुशल और सानंद हैं। आज हम यौगिक मनोविज्ञान के ऊपर आधारित प्राचीन गुरुकुलों की शिक्षा पद्दति पर बात करेंगे और देखेंगे कि इसे आधुनिक शिक्षा पद्दति में शामिल करके कैसे विद्यार्थियों के लिए सर्वोत्तम परिणाम हासिल किए जा सकते हैं। आइये, शुरू करें। श्रीरामचरितमानस की एक चौपाई है- "गुरु गृह गए पढन रघुराई, अल्प काल विद्या सब पाई"। "मतलब?" " जब रघुनाथ जी गुरु के घर अर्थात गुरुकुल पढ़ने गए तो उन्होनें अल्प काल में ही सारी विद्याएं प्राप्त कर लीं।" अत्यधिक कम समय में ही शास्त्र और शस्त्र विद्याओं में पारंगत होने का ही प्रभाव था कि रघुनाथ जी महर्षि विश्वामित्र की नजरों में आये। उन्हें महर्षि ने अपने आश्रम की सुरक्षा का जिम्मा सौंपा और आगे जाकर अपनी युद्धकला भी सिखाई। महर्षि वशिष्ठ का सम्पूर्ण शास्त्रज्ञान और महर्षि विश्वामित्र का सम्पूर्ण शस्त्रज्ञान श्रीराम में समाहित हो गया। इस तरह वह इस पृथ्वी के तीसरे ऐसे व्यक्ति बने जो शास्त्र और शस्त्र इन दोनों ही क्षेत्रों में चरम सीमा का ज्ञान रखते थे। उनके अलावा अन्य दो व्यक्ति थे- परशु...

रामनाम का अवलंबन: Lord's Name is the only remedy

दोस्तों, आज हम श्रीरामचरितमानस का एक सूत्र लेंगे और उसका विस्तृत विश्लेषण करेंगे। "नहिं कलि करम न भक्ति विवेकु। रामनाम अवलंबन एकु।" आइये, इसका अर्थ समझें। "कलियुग में कर्म, भक्ति और  विवेक अर्थात ज्ञान ये तीनों ही देखने को नहीं मिलते । अतः रामनाम ही एकमात्र उपाय बचता है।" कलियुग मतलब? कलियुग मतलब ऐसा युग जिसमें मानवीय गुणों जैसे दयालुता, ईमानदारी, सत्य, अहिंसा का अभाव है। जिसकी नीतियां और जीवनशैली मानवमात्र के मन और प्राणों को जला रही हैं। इस युग में सत्ता, समाज , धर्म और आर्थिक संसाधनों का नियंत्रण एक छोटे समूह के हाथों में होता है जो बहुसंख्यक आम जनता के प्रति संवेदनशील नहीं होते। इस तरह की स्तिथि में आम जनता अनेक तरह की गरीबी, अत्याचार, भेदभाव और शोषण का शिकार होती है। ऐसी घटनाओं को देखकर लोग कह बैठते हैं-"भाई! घोर कलियुग आ गया है"। अब एक दिलचस्प बात! कलियुग के बाद हमेशा ही सतयुग आता है। सतयुग, जिसमें मानव सभ्यता अपने आदर्श स्वरूप में होती है। अब एक सवाल लीजिये। कलियुग के बाद सतयुग ही क्यों आता है? आइये, विस्तार से समझें। कलियुग इसी वजह ...

एक राष्ट्रीय तीर्थ स्थल की यात्रा:Pilgrimage to know our India

आज हम एक ऐसे तीर्थ के बारे में जानेंगे जहां जाकर अपने प्यारे भारत देश की आत्मा को महसूस किया जा सकता है। प्रख्यात तीर्थ नगरी हरिद्वार में स्थित भारत माता मंदिर अपने निर्माण के समय से ही राष्ट्रवादी भक्तों की आस्था का केंद्र रहा है। शुरू में ही अनुरोध करता हूं। अगर हरिद्वार जाना हो, तो यहां जरूर जाएं।अगर भारतमाता की अमर संतानों को जानना हो तो यहां जरूर जाएं। अगर आप अपने भारत के भौतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक स्वरुप को देखना चाहते हैं तो यहां जरूर जाएं। इस मंदिर में क्या है? यहां धार्मिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक एवं सामाजिक क्षेत्र की विभूतियों के दर्शन किये जा सकते हैं जिनके विचारों, शिक्षाओं एवं प्रयासों ने आज का भारत गढ़ा है।भारत के बारे में अनेक क़िताबें पढ़कर भी उतना जानना संभव नहीं, जितना यहां आकर एक बार घूमने से मिल सकता है! आइये, इस मंदिर का इतिहास जानें। 180 फ़ीट ऊंचे इस मंदिर का निर्माण स्वामी सत्यमित्रानंद जी के द्वारा सन 1983 में कराया गया। उस वक़्त की हमारी प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने इसका उद्घाटन किया। आइये, अब इसे घूमने चलें। यह मंदिर आठमंजिला है। इसकी हर मंजिल...