राफेल आजकल हर जगह चर्चा में है। जितने मुँह, उतनी तरह की बातें हो रही हैं।हमारे नेतागण तो इसपे तरह तरह के शोध करके मानों नोबेल प्राइज पाने की होड़ में लगे हैं।
कल रात को news देख रहा था। rafale पर लोगों के रिएक्शन पूछे जा रहे थे-
न्यूज़ एंकर- क्या लगता है आपको, rafale के आने से क्या होगा?
एक व्यक्ति-हमारे पायलटों को पाक में घुसने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। अपनी वायुसीमा में रहकर ही पाक विमानों को ढेर कर देंगे।
दूसरा- राफेल आ जाये बस। फिर तो ये सब दुश्मनों को फेल कर देगा।
तीसरा- rafale के आगे कोई दुश्मन नहीं टिक पायेगा।अकेला एक राफेल दुश्मन के पांच पांच विमानों पर भारी पड़ेगा।
यहां बताता चलूं कि ये तीसरी टिप्पणी ऐसे व्यक्ति द्वारा कही गयी है जो बहुत अच्छे विशेषज्ञ माने जाते हैं।
इच्छा तो नहीं थी कि इतने पॉपुलर टॉपिक पर कुछ लिखूं क्योंकि इसके बारे में तो सब जानते हैं।लेकिन फिर लगा कि जो हमलोग न्यूज़ में देख रहे हैं, वो काफी short में बताया जा रहा है।क्यों?क्योंकि न्यूज़ चैनलों पर अनेक बंदिशें होती हैं, उन्हें एक सीमित समय में ही सारी खबरें देनी होती हैं। अतः किसी भी टॉपिक का संतुलित विश्लेषण कम ही हो पाता है।
लेकिन एक बात जान लीजिए। rafale एक बहुत ही जरूरी टॉपिक है जिसके हर पहलू की जानकारी हम भारत के लोगों को होनी चाहिए। क्यों होनी चाहिए? क्योंकि इसे हम अपनी रक्षा के लिए खरीद रहे हैं। अगर गलती से भी भारत पाक युद्ध हुआ तो मुकाबले में सुखोई और मिराज के साथ rafale को ही जाना पड़ेगा। दुश्मन को हर मोर्चे पर फेल करने के लिए सौ प्रतिशत जरूरी है कि ये राफेल कहीं भी फेल न हो। देखें तो ये बहुत खुशी की बात है कि हमारे देश में नागरिक इसपर जागरूक हैं।जब भी जागरूक हो कर कुछ खरीदा जाता है तो उसके अच्छे results मिलते हैं।
चलिए, शुरू करते हैं।
सन 2006 में यानी आज से 12 साल पहले भारत की वायुसेना ने काफी सोच विचार करने के बाद तय किया कि उनको 126 लड़ाकू जहाजों की जरूरत है।
वायुसेना ने ये बात रक्षामंत्री को बताई।
वायुसेना- सर, हमें 126 लड़ाकू जहाज चाहिये।
रक्षामंत्री- 126 क्यों?
वायुसेना- हमने चीन को समझा।पाकिस्तान को भी समझा। अगर कभी ये दोनों युद्ध मे साथ आये, तो 126 विमान पर्याप्त होंगे, इन दोनों को full and final समझाने के लिए।
रक्षामंत्री- हम आपकी हर आवश्यकता पूरी करने को प्रतिबद्ध हैं।
अब आगे चलिए। रक्षामंत्री ने ये बात प्रधानमंत्री को बताई।
रक्षामंत्री- हमारी वायुसेना को 126 लड़ाकू जहाज चाहिए। हमें जल्दी से जल्दी उनकी आवश्यकता पूरी करनी चाहिए।
प्रधानमंत्री-सही कहा।इसपर हमें मंत्रिमंडल की meeting बुलाकर विचार करना चाहिए।
मंत्रिमंडल की मीटिंग में-
प्रधानमंत्री- हमारी वायुसेना को लड़ाकू जहाज चाहिए।हमें उनका प्रस्ताव स्वीकार करके बजट में धन का प्रावधान करना है ताकि जल्दी से जल्दी उनको खरीदने की प्रक्रिया शुरू हो सके।
वित्तमंत्री- हमारे देश का एक एक रुपया कीमती है।अतः हमें सुनिश्चित करना होगा कि सबसे कम कीमत में सबसे बेहतर विमान खरीदे जाएं।इसके लिए कड़ी प्रक्रिया का पालन करेंगे।
रक्षामंत्री- वायुसेना और रक्षा मंत्रालय हर विकल्प की गहन जांच पड़ताल के बाद ही कोई फैसला करेंगे।
बाकी मंत्रीगण- सही बात है।
मंत्रिमंडल से मंजूरी मिलने के बाद खरीदने की प्रक्रिया शुरू होती है। इसमें पूरा साल निकल जाता है।
आखिर इस प्रक्रिया में क्या होता है?आइये देखें।
रक्षा मंत्रालय- वायुसेना, ये बताओ कि जो जहाज आपको चाहिए उसके technical specification क्या हैं।
दोस्तों, यहां पर एक बात ध्यान देने की है।सरकार जो भी खरीदती है उसकी निश्चित प्रक्रिया है।
पहला चरण- जो चीज़ खरीदनी है, उसके हर पार्ट पुर्जे एवं विशेषता का वर्णन लिखिए। जैसे अगर कार लेनी है तो आपको बताना होगा कि इसमें कितने tyres होंगे, ये पेट्रोल से चलेगी या डीज़ल से, इसमें कितनी सीटें होंगी,ये सब कुछ। यहां अगर एक दो शब्द भी गलत हुए तो आपकी ऐसी की तैसी हो जाना निश्चित है।
दूसरा चरण-टेंडर निकालिये। मतलब? पूरी दुनिया की कंपनियों को जानकारी दीजिये कि हाँ, हमको लेना है और यही लेना है।जो भी कंपनी बेचना चाहे, वो आपसे संपर्क करेगी।
तीसरा चरण- जितने विकल्प आपको मिलते है सबका theory और practical हर तरह से ठोक बजा कर परीक्षण करें।
चौथा चरण- जो विकल्प सबसे अच्छा साबित होता है उसे फाइनल करके मोल भाव करिये।कीमत कम कराइये।अगर कंपनी न माने तो फिर सुविधाओं को बढवाईये।जैसे? एक साल की गारंटी को बढ़वाकर तीन साल करवा लेना।
पांचवा चरण- पैसा दीजिये और जहाज लीजिये।फिर खुद बैठकर उड़िये या दुश्मन को हमला करके उड़ाइये-आपकी मर्जी!
प्रक्रिया को समझने के बाद चलते हैं वापस 2006 में।
हम देख चुके हैं कि 2006 में वायुसेना ने अपनी जरूरत बताई।
एक साल बाद 2007 में tender निकाले गए।कई कंपनियों ने आवेदन किया।
इसके बाद पांच बरस तक हम स्टडी ही करते रह गए! जी हां, 2012 में जाकर ये decide हो पाया कि हमको rafale ही लेना चाहिए।
मोल भाव करने में दो साल और निकल गए।2014 में decide हुआ कि 18 जहाज कंपनी बनाकर देगी ।बाकी 108 हम खुद ही बनाएगें। ऐसा क्यों? ताकि हमारे यहां हजारों लोगों को रोजगार मिले, टेक्नोलॉजी सीख सकें इसलिए।
दोस्तों, कायदे से देखा जाए तो प्रोसेस यहां final हो चुकी थी।लेकिन कहते हैं न कि अति हमेशा बुरी होती है।मोल भाव का एक दौर और शुरू किया गया। क्यों? दाम कम कराने के लिए।
भारत सरकार- हां जी, दाम थोड़ा और काम करो न। तुम तो केवल 18 विमान ही बनाओगे। बाकी सारी मेहनत तो हमको ही करनी है।
कंपनी- इतना तो मोल भाव पहले ही कर चुके हो, अब बच्चे की जान लोगे क्या!
भारत सरकार- हम तो अच्छे से सोच समझ कर ही खरीदेंगे ।
दोस्तों, सोचने समझने के चक्कर में 2014 के चुनाव आ गए। नई सरकार सत्ता में आई।
वायुसेना अब नई सरकार से मिली।
वायुसेना- हमें जहाज चाहिए। कृपया पहले के प्रस्ताव पर विचार करें।हम आठ साल लेट हो चुके हैं।
सरकार- विशेषज्ञ लोग बताइये, कैसे काम होगा?
विशेषज्ञ- आप पुराना टेंडर कैंसिल कर दीजिए। उसकी एक्सपायरी डेट निकल चुकी है।अब नए सिरे से खरीदिये।
सरकार- फिर से प्रक्रिया शुरू करेंगे तो कम से कम चार पांच साल तो लग ही जायेंगे।
विशेषज्ञ- नहीं तो।इस बार कंपनी से नहीं, सीधा वहां की सरकार से deal कर लीजिए।
लेकिन दोस्तों, एक समस्या तो अभी भी बाकी थी। उसकी चर्चा करने से पहले एक बात बताइये।मान लो कि आपने फ़्रिज खरीदने के लिए बैंक से 15 हजार रुपये निकाले। बाजार गए। जो मॉडल आपको पसंद था, वो मिला ही नहीं।पता चला, वो तो दो महीने बाद आएगा। आप खाली हाथ घर आ गए।अब बताइये- क्या दो महीने तक आपके ये 15 हजार रखे रहेंगे? नहीं न!वो तो दूसरे जरूरी कामों में खर्च हो जाएंगे।
अब आप समझ गए न, नई सरकार के सामने क्या स्थिति थी!126 जहाजों को कैसे खरीदते अब?
लेकिन सरकार जानती थी कि अब देर करना घातक होगा। विशेषज्ञ लोगों की बात मानकर 36 राफेल खरीदने का समझौता फ्रांस की सरकार से कर लिया।तय हुआ कि 2019 में हमको ये जहाज मिल जाएंगे। 36 राफेल ही क्यों?आप जान ही चुके हो।
दोस्तों, यहां से आगे की कहानी आप ढेर सारे न्यूज़ चैनलों में बहुत बार सुन चुके हो कि कैसे rafale अपनी कीमतों एवं अन्य चीजों के चलते विवादों में फंस गया। एक अच्छे- तगड़े, चतुर चालाक, बाज की तरह उड़ने वाले विमान को भला क्या क्या नहीं सुनना पड़ा।
अब आइये अपने बेसिक सवाल पर। क्या rafale हमको चाहिए? वायुसेना 5 सालों के विश्लेषण में बता चुकी है कि हाँ यही चाहिए।जिसका कोई विकल्प नहीं,क्या उसको जल्दी से जल्दी नही ले लेना चाहिए?आखिर फ्रांस कोई हमारा गुलाम तो है नहीं। अगर हम ऐसे ही इमोशनल अत्याचार करते रहेंगे तो वो किसी को भी ये जहाज बेच देगा- शायद पाकिस्तान को भी। फिर देर कैसी?
अंत में एक योद्धा का विचार लिख रहा हूँ- हमेशा जीतने के लिए युद्ध लड़ना चाहिए क्योंकि इसमें कोई runner up अर्थात उपविजेता नहीं होता!और जीतने के लिए आपको सेना को वही हथियार देने होंगे, जो वो चाहती है!
दोस्तों, आशा है कि इस लेख ने आपको कुछ नए विचार दिए होंगे। अभी तो आगे भी ये टॉपिक चर्चा में रहने वाला है। तो आगे जब भी किसी न्यूज़ चैनल पर या अपने आस पास आप कोई डिबेट देखें तो इन चीजों को ध्यान में रखें। सच्चाई आपकी नजरों से ओझल नहीं होगी।
कल रात को news देख रहा था। rafale पर लोगों के रिएक्शन पूछे जा रहे थे-
न्यूज़ एंकर- क्या लगता है आपको, rafale के आने से क्या होगा?
एक व्यक्ति-हमारे पायलटों को पाक में घुसने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। अपनी वायुसीमा में रहकर ही पाक विमानों को ढेर कर देंगे।
दूसरा- राफेल आ जाये बस। फिर तो ये सब दुश्मनों को फेल कर देगा।
तीसरा- rafale के आगे कोई दुश्मन नहीं टिक पायेगा।अकेला एक राफेल दुश्मन के पांच पांच विमानों पर भारी पड़ेगा।
यहां बताता चलूं कि ये तीसरी टिप्पणी ऐसे व्यक्ति द्वारा कही गयी है जो बहुत अच्छे विशेषज्ञ माने जाते हैं।
इच्छा तो नहीं थी कि इतने पॉपुलर टॉपिक पर कुछ लिखूं क्योंकि इसके बारे में तो सब जानते हैं।लेकिन फिर लगा कि जो हमलोग न्यूज़ में देख रहे हैं, वो काफी short में बताया जा रहा है।क्यों?क्योंकि न्यूज़ चैनलों पर अनेक बंदिशें होती हैं, उन्हें एक सीमित समय में ही सारी खबरें देनी होती हैं। अतः किसी भी टॉपिक का संतुलित विश्लेषण कम ही हो पाता है।
लेकिन एक बात जान लीजिए। rafale एक बहुत ही जरूरी टॉपिक है जिसके हर पहलू की जानकारी हम भारत के लोगों को होनी चाहिए। क्यों होनी चाहिए? क्योंकि इसे हम अपनी रक्षा के लिए खरीद रहे हैं। अगर गलती से भी भारत पाक युद्ध हुआ तो मुकाबले में सुखोई और मिराज के साथ rafale को ही जाना पड़ेगा। दुश्मन को हर मोर्चे पर फेल करने के लिए सौ प्रतिशत जरूरी है कि ये राफेल कहीं भी फेल न हो। देखें तो ये बहुत खुशी की बात है कि हमारे देश में नागरिक इसपर जागरूक हैं।जब भी जागरूक हो कर कुछ खरीदा जाता है तो उसके अच्छे results मिलते हैं।
चलिए, शुरू करते हैं।
सन 2006 में यानी आज से 12 साल पहले भारत की वायुसेना ने काफी सोच विचार करने के बाद तय किया कि उनको 126 लड़ाकू जहाजों की जरूरत है।
वायुसेना ने ये बात रक्षामंत्री को बताई।
वायुसेना- सर, हमें 126 लड़ाकू जहाज चाहिये।
रक्षामंत्री- 126 क्यों?
वायुसेना- हमने चीन को समझा।पाकिस्तान को भी समझा। अगर कभी ये दोनों युद्ध मे साथ आये, तो 126 विमान पर्याप्त होंगे, इन दोनों को full and final समझाने के लिए।
रक्षामंत्री- हम आपकी हर आवश्यकता पूरी करने को प्रतिबद्ध हैं।
अब आगे चलिए। रक्षामंत्री ने ये बात प्रधानमंत्री को बताई।
रक्षामंत्री- हमारी वायुसेना को 126 लड़ाकू जहाज चाहिए। हमें जल्दी से जल्दी उनकी आवश्यकता पूरी करनी चाहिए।
प्रधानमंत्री-सही कहा।इसपर हमें मंत्रिमंडल की meeting बुलाकर विचार करना चाहिए।
मंत्रिमंडल की मीटिंग में-
प्रधानमंत्री- हमारी वायुसेना को लड़ाकू जहाज चाहिए।हमें उनका प्रस्ताव स्वीकार करके बजट में धन का प्रावधान करना है ताकि जल्दी से जल्दी उनको खरीदने की प्रक्रिया शुरू हो सके।
वित्तमंत्री- हमारे देश का एक एक रुपया कीमती है।अतः हमें सुनिश्चित करना होगा कि सबसे कम कीमत में सबसे बेहतर विमान खरीदे जाएं।इसके लिए कड़ी प्रक्रिया का पालन करेंगे।
रक्षामंत्री- वायुसेना और रक्षा मंत्रालय हर विकल्प की गहन जांच पड़ताल के बाद ही कोई फैसला करेंगे।
बाकी मंत्रीगण- सही बात है।
मंत्रिमंडल से मंजूरी मिलने के बाद खरीदने की प्रक्रिया शुरू होती है। इसमें पूरा साल निकल जाता है।
आखिर इस प्रक्रिया में क्या होता है?आइये देखें।
रक्षा मंत्रालय- वायुसेना, ये बताओ कि जो जहाज आपको चाहिए उसके technical specification क्या हैं।
दोस्तों, यहां पर एक बात ध्यान देने की है।सरकार जो भी खरीदती है उसकी निश्चित प्रक्रिया है।
पहला चरण- जो चीज़ खरीदनी है, उसके हर पार्ट पुर्जे एवं विशेषता का वर्णन लिखिए। जैसे अगर कार लेनी है तो आपको बताना होगा कि इसमें कितने tyres होंगे, ये पेट्रोल से चलेगी या डीज़ल से, इसमें कितनी सीटें होंगी,ये सब कुछ। यहां अगर एक दो शब्द भी गलत हुए तो आपकी ऐसी की तैसी हो जाना निश्चित है।
दूसरा चरण-टेंडर निकालिये। मतलब? पूरी दुनिया की कंपनियों को जानकारी दीजिये कि हाँ, हमको लेना है और यही लेना है।जो भी कंपनी बेचना चाहे, वो आपसे संपर्क करेगी।
तीसरा चरण- जितने विकल्प आपको मिलते है सबका theory और practical हर तरह से ठोक बजा कर परीक्षण करें।
चौथा चरण- जो विकल्प सबसे अच्छा साबित होता है उसे फाइनल करके मोल भाव करिये।कीमत कम कराइये।अगर कंपनी न माने तो फिर सुविधाओं को बढवाईये।जैसे? एक साल की गारंटी को बढ़वाकर तीन साल करवा लेना।
पांचवा चरण- पैसा दीजिये और जहाज लीजिये।फिर खुद बैठकर उड़िये या दुश्मन को हमला करके उड़ाइये-आपकी मर्जी!
प्रक्रिया को समझने के बाद चलते हैं वापस 2006 में।
हम देख चुके हैं कि 2006 में वायुसेना ने अपनी जरूरत बताई।
एक साल बाद 2007 में tender निकाले गए।कई कंपनियों ने आवेदन किया।
इसके बाद पांच बरस तक हम स्टडी ही करते रह गए! जी हां, 2012 में जाकर ये decide हो पाया कि हमको rafale ही लेना चाहिए।
मोल भाव करने में दो साल और निकल गए।2014 में decide हुआ कि 18 जहाज कंपनी बनाकर देगी ।बाकी 108 हम खुद ही बनाएगें। ऐसा क्यों? ताकि हमारे यहां हजारों लोगों को रोजगार मिले, टेक्नोलॉजी सीख सकें इसलिए।
दोस्तों, कायदे से देखा जाए तो प्रोसेस यहां final हो चुकी थी।लेकिन कहते हैं न कि अति हमेशा बुरी होती है।मोल भाव का एक दौर और शुरू किया गया। क्यों? दाम कम कराने के लिए।
भारत सरकार- हां जी, दाम थोड़ा और काम करो न। तुम तो केवल 18 विमान ही बनाओगे। बाकी सारी मेहनत तो हमको ही करनी है।
कंपनी- इतना तो मोल भाव पहले ही कर चुके हो, अब बच्चे की जान लोगे क्या!
भारत सरकार- हम तो अच्छे से सोच समझ कर ही खरीदेंगे ।
दोस्तों, सोचने समझने के चक्कर में 2014 के चुनाव आ गए। नई सरकार सत्ता में आई।
वायुसेना अब नई सरकार से मिली।
वायुसेना- हमें जहाज चाहिए। कृपया पहले के प्रस्ताव पर विचार करें।हम आठ साल लेट हो चुके हैं।
सरकार- विशेषज्ञ लोग बताइये, कैसे काम होगा?
विशेषज्ञ- आप पुराना टेंडर कैंसिल कर दीजिए। उसकी एक्सपायरी डेट निकल चुकी है।अब नए सिरे से खरीदिये।
सरकार- फिर से प्रक्रिया शुरू करेंगे तो कम से कम चार पांच साल तो लग ही जायेंगे।
विशेषज्ञ- नहीं तो।इस बार कंपनी से नहीं, सीधा वहां की सरकार से deal कर लीजिए।
लेकिन दोस्तों, एक समस्या तो अभी भी बाकी थी। उसकी चर्चा करने से पहले एक बात बताइये।मान लो कि आपने फ़्रिज खरीदने के लिए बैंक से 15 हजार रुपये निकाले। बाजार गए। जो मॉडल आपको पसंद था, वो मिला ही नहीं।पता चला, वो तो दो महीने बाद आएगा। आप खाली हाथ घर आ गए।अब बताइये- क्या दो महीने तक आपके ये 15 हजार रखे रहेंगे? नहीं न!वो तो दूसरे जरूरी कामों में खर्च हो जाएंगे।
अब आप समझ गए न, नई सरकार के सामने क्या स्थिति थी!126 जहाजों को कैसे खरीदते अब?
लेकिन सरकार जानती थी कि अब देर करना घातक होगा। विशेषज्ञ लोगों की बात मानकर 36 राफेल खरीदने का समझौता फ्रांस की सरकार से कर लिया।तय हुआ कि 2019 में हमको ये जहाज मिल जाएंगे। 36 राफेल ही क्यों?आप जान ही चुके हो।
दोस्तों, यहां से आगे की कहानी आप ढेर सारे न्यूज़ चैनलों में बहुत बार सुन चुके हो कि कैसे rafale अपनी कीमतों एवं अन्य चीजों के चलते विवादों में फंस गया। एक अच्छे- तगड़े, चतुर चालाक, बाज की तरह उड़ने वाले विमान को भला क्या क्या नहीं सुनना पड़ा।
अब आइये अपने बेसिक सवाल पर। क्या rafale हमको चाहिए? वायुसेना 5 सालों के विश्लेषण में बता चुकी है कि हाँ यही चाहिए।जिसका कोई विकल्प नहीं,क्या उसको जल्दी से जल्दी नही ले लेना चाहिए?आखिर फ्रांस कोई हमारा गुलाम तो है नहीं। अगर हम ऐसे ही इमोशनल अत्याचार करते रहेंगे तो वो किसी को भी ये जहाज बेच देगा- शायद पाकिस्तान को भी। फिर देर कैसी?
अंत में एक योद्धा का विचार लिख रहा हूँ- हमेशा जीतने के लिए युद्ध लड़ना चाहिए क्योंकि इसमें कोई runner up अर्थात उपविजेता नहीं होता!और जीतने के लिए आपको सेना को वही हथियार देने होंगे, जो वो चाहती है!
दोस्तों, आशा है कि इस लेख ने आपको कुछ नए विचार दिए होंगे। अभी तो आगे भी ये टॉपिक चर्चा में रहने वाला है। तो आगे जब भी किसी न्यूज़ चैनल पर या अपने आस पास आप कोई डिबेट देखें तो इन चीजों को ध्यान में रखें। सच्चाई आपकी नजरों से ओझल नहीं होगी।
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