दोस्तों, पिछले लेख में हमने चर्चा की थी महर्षि पतंजलि और अष्टावक्र के बारे में। आज हम इसे आगे बढ़ाते हुए कुछ और महापुरुषों के बारे में जानेंगे जिन्होंने योगविज्ञान में नए आयाम स्थापित किये और आम जनता को लाभान्वित किया। इन्होंने पूरे समाज को एक नई दिशा दी तथा शासकों ने भी इन्हें पूरा support दिया।
आइये शुरू करते हैं।
वशिष्ठ का नाम योग गुरुओं में बहुत ऊंचा है। वो भगवान राम के गुरु थे, एक महान ऋषि अर्थात महर्षि थे। वास्तव में रघुकुल राजवंश के गुरुओं की उपाधि वशिष्ठ हुआ करती थी।
" रघुकुल क्या था?"
" रघुकुल भारत के सर्वाधिक शक्तिशाली राजवंशों में एक था।इनकी राजधानी को अयोध्या कहा जाता था।
"इनकी राजधानी का नाम अयोध्या क्यों पड़ा था"?
क्योंकि उसे किसी प्रकार से भी जीता नहीं जा सकता था।
अब आप अनुमान लगा सकते हैं- कि उस युग में वशिष्ठ की power क्या रही होगी!
वशिष्ठ किसलिए प्रसिद्ध थे?
अपनी योग साधना के लिए। योग का उनका व्यवहारिक ज्ञान उस समय में सबसे अधिक था।उनकी पत्नी अरुधंति भी गुणों में उनकी तरह थी। जनता में उनकी अथाह लोकप्रियता थी।
एक चीज़ और थी। उन्होंने योग की अपनी techniques में गायत्री मंत्र एवं सूर्य उपासना को भी शामिल किया था। क्यों किया था? जिससे बहुत कम समय में बहुत अच्छे परिणाम लिए जा सकें। उनके द्वारा विकसित ये गायत्री विज्ञान कई लोगों के द्वारा कामधेनु भी कहा जाता था। कामधेनु का अर्थ है सभी इच्छाओं को पूरा करनेवाली गाय।
भगवान राम के गुरु जो वशिष्ठ थे,अलग हटकर थे। उन्होंने योग और अध्यात्म पर आधारित शिक्षा प्रणाली बनाई।
क्यों बनाई?
ताकि शासक वर्ग जनता के दर्द से जुड़ सके।राजाओं, राजकुमारों के मन में सांसारिक सुख सुविधाओं, धन,सत्ता का लोभ न रहे। वो हमेशा सत्य के मार्ग पर चलें।
वशिष्ठ के दो सबसे प्रिय शिष्य राम और भरत थे। राम शस्त्रों और शास्त्रों में सबसे बढ़कर निकले।छोटी उम्र से ही उन्होंने बहुत बड़े युद्धों को जीतना शुरू कर दिया। वशिष्ठ ने उन्हें भावी शासक के तौर पर तैयार करना शुरू किया।
वशिष्ठ ने अपने सबसे प्रिय शिष्य राम को कहा- जनता के बीच जाओ।थोड़े दिन उनके बीच रहो।उनका दुखदर्द समझो। उसका उपाय खोजो।
राम पूरे देश में घूमे।जन जन के बीच गए।उनका हर दर्द जाना। लौटकर आये तो सोच विचार में मग्न रहने लगे।
बात क्या थी? राम का झुकाव वैराग्य की ओर हो रहा था।
वशिष्ठ चिंतित हुए। क्यों? वो राम को संन्यासी नहीं शासक बनाना चाहते थे।
गुरु वशिष्ट और राम में सोच विचार शुरू हुआ।
गुरु और शिष्य के बीच का ये logic योग वशिष्ठ नामक ग्रंथ का आधार बना। इसमें करीब 29 हजार श्लोक हैं।स्वामी रामतीर्थ ने इसे संसार का सबसे अद्भुत ग्रंथ कहा है।
ये ग्रंथ 6 chapters में है।
पहला chapter- राम संसार के दुखों का वर्णन करते हैं।बताते हैं कि वो संन्यासी क्यों बनना चाहते हैं।वशिष्ठ उनके सब लॉजिक सुनते हैं।
इसके बाद आगे के 5 chapters में वशिष्ट कहते हैं और राम सुनते हैं। कहानियों,तथ्यों और लॉजिक के द्वारा ये समझाते हैं कि राज्य करना,लोगों की रक्षा करना और लोगों की समृद्धि के लिए काम करना ही उनका धर्म है और उनको इसका पालन करना ही होगा।
वशिष्ठ ने कहा-चिड़िया के उड़ने के लिए दो पंख जरूरी हैं।उसी तरह मानव के लिए धर्म और कर्म दोनों जरूरी हैं।अगर कोई केवल एक के पीछे ही लगे, तो उसकी हालत एक पंख वाली चिड़िया की तरह हो जाएगी।
दोस्तों, वशिष्ठ जैसा teacher आज तक दूसरा नहीं हुआ जो पहले शिष्य को समझे,इसके बाद उसे समझाए। वो एक friend की तरह आपके पास आते हैं,कुछ किस्से सुनाते हैं, आपके मन में महान लक्ष्यों की प्राप्ति का सपना पैदा करते हैं और इसी क्रम में कब आपकी सोच को पूरी तरह बदलकर रख देते हैं, आपको पता भी नहीं लगता।
चाणक्य ने चंद्रगुप्त को बनाया, समर्थ रामदास ने शिवाजी को। लेकिन वशिष्ठ को लीजिये, वे उन राम की श्रद्धा के पात्र बन गए जिनकी पूजा आज करोडों लोग करते हैं।राम का साथ देने के लिए उन्होनें भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न जैसे शिष्यों को भी बनाया। इनका चरित्र, इनकी बातें पढ़कर आज भी असंख्य लोग शक्ति और साहस प्राप्त करते हैं।
महर्षि वशिष्ठ की एक सलाह बड़ी अनूठी है- आप चाहे जो कार्य करें, उसमें योग को शामिल जरूर करें। जब भी व्यस्तता से छुट्टी मिले-प्राणायाम,ध्यान और चिंतन करिये।
"ऐसा करने से क्या होगा"?
"ऐसा करने से आपकी आत्मशक्ति आपकी सहायक बन जाएगी।आपकी professional life का कोई भी बुरा प्रभाव आपके मन और आत्मा पर नहीं हो पायेगा।आप शांति और उल्लास में सराबोर रहेंगे।आप अपनी full capacity से कार्य कर पाएंगे।"
यही कारण है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां अक्सर apne employees के लिए तरह तरह के मोटिवेशनल प्रोग्राम चलाती रहती हैं।
दोस्तों, आइये हम भी गुरु वशिष्ठ जी की इस बात को मानकर अपने अवकाश के पलों में से कुछ पल योग के अध्ययन और पालन में जरूर बिताएं।
मित्रों, अब एक व्यक्तिगत बात, आपमें से कई लोगों के संदेश और सुझाव मुझे प्राप्त हो रहे हैं।जिनमें आचार्य अश्विनी जी, आचार्य अजय जी, आचार्य श्रीसत्य जी, योगी प्रकाश जी का मैं विशेष धन्यवाद करता हूँ जो योगविज्ञान को आम जनता तक पहुंचाने का महान कार्य कर रहे हैं। आप सब से एक ही बात कहनी है- ये वेबसाइट आपकी है और आपका हर सुझाव जल्दी ही implement करने का प्रयास होगा।
आइये शुरू करते हैं।
वशिष्ठ का नाम योग गुरुओं में बहुत ऊंचा है। वो भगवान राम के गुरु थे, एक महान ऋषि अर्थात महर्षि थे। वास्तव में रघुकुल राजवंश के गुरुओं की उपाधि वशिष्ठ हुआ करती थी।
" रघुकुल क्या था?"
" रघुकुल भारत के सर्वाधिक शक्तिशाली राजवंशों में एक था।इनकी राजधानी को अयोध्या कहा जाता था।
"इनकी राजधानी का नाम अयोध्या क्यों पड़ा था"?
क्योंकि उसे किसी प्रकार से भी जीता नहीं जा सकता था।
अब आप अनुमान लगा सकते हैं- कि उस युग में वशिष्ठ की power क्या रही होगी!
वशिष्ठ किसलिए प्रसिद्ध थे?
अपनी योग साधना के लिए। योग का उनका व्यवहारिक ज्ञान उस समय में सबसे अधिक था।उनकी पत्नी अरुधंति भी गुणों में उनकी तरह थी। जनता में उनकी अथाह लोकप्रियता थी।
एक चीज़ और थी। उन्होंने योग की अपनी techniques में गायत्री मंत्र एवं सूर्य उपासना को भी शामिल किया था। क्यों किया था? जिससे बहुत कम समय में बहुत अच्छे परिणाम लिए जा सकें। उनके द्वारा विकसित ये गायत्री विज्ञान कई लोगों के द्वारा कामधेनु भी कहा जाता था। कामधेनु का अर्थ है सभी इच्छाओं को पूरा करनेवाली गाय।
भगवान राम के गुरु जो वशिष्ठ थे,अलग हटकर थे। उन्होंने योग और अध्यात्म पर आधारित शिक्षा प्रणाली बनाई।
क्यों बनाई?
ताकि शासक वर्ग जनता के दर्द से जुड़ सके।राजाओं, राजकुमारों के मन में सांसारिक सुख सुविधाओं, धन,सत्ता का लोभ न रहे। वो हमेशा सत्य के मार्ग पर चलें।
वशिष्ठ के दो सबसे प्रिय शिष्य राम और भरत थे। राम शस्त्रों और शास्त्रों में सबसे बढ़कर निकले।छोटी उम्र से ही उन्होंने बहुत बड़े युद्धों को जीतना शुरू कर दिया। वशिष्ठ ने उन्हें भावी शासक के तौर पर तैयार करना शुरू किया।
वशिष्ठ ने अपने सबसे प्रिय शिष्य राम को कहा- जनता के बीच जाओ।थोड़े दिन उनके बीच रहो।उनका दुखदर्द समझो। उसका उपाय खोजो।
राम पूरे देश में घूमे।जन जन के बीच गए।उनका हर दर्द जाना। लौटकर आये तो सोच विचार में मग्न रहने लगे।
बात क्या थी? राम का झुकाव वैराग्य की ओर हो रहा था।
वशिष्ठ चिंतित हुए। क्यों? वो राम को संन्यासी नहीं शासक बनाना चाहते थे।
गुरु वशिष्ट और राम में सोच विचार शुरू हुआ।
गुरु और शिष्य के बीच का ये logic योग वशिष्ठ नामक ग्रंथ का आधार बना। इसमें करीब 29 हजार श्लोक हैं।स्वामी रामतीर्थ ने इसे संसार का सबसे अद्भुत ग्रंथ कहा है।
ये ग्रंथ 6 chapters में है।
पहला chapter- राम संसार के दुखों का वर्णन करते हैं।बताते हैं कि वो संन्यासी क्यों बनना चाहते हैं।वशिष्ठ उनके सब लॉजिक सुनते हैं।
इसके बाद आगे के 5 chapters में वशिष्ट कहते हैं और राम सुनते हैं। कहानियों,तथ्यों और लॉजिक के द्वारा ये समझाते हैं कि राज्य करना,लोगों की रक्षा करना और लोगों की समृद्धि के लिए काम करना ही उनका धर्म है और उनको इसका पालन करना ही होगा।
वशिष्ठ ने कहा-चिड़िया के उड़ने के लिए दो पंख जरूरी हैं।उसी तरह मानव के लिए धर्म और कर्म दोनों जरूरी हैं।अगर कोई केवल एक के पीछे ही लगे, तो उसकी हालत एक पंख वाली चिड़िया की तरह हो जाएगी।
दोस्तों, वशिष्ठ जैसा teacher आज तक दूसरा नहीं हुआ जो पहले शिष्य को समझे,इसके बाद उसे समझाए। वो एक friend की तरह आपके पास आते हैं,कुछ किस्से सुनाते हैं, आपके मन में महान लक्ष्यों की प्राप्ति का सपना पैदा करते हैं और इसी क्रम में कब आपकी सोच को पूरी तरह बदलकर रख देते हैं, आपको पता भी नहीं लगता।
चाणक्य ने चंद्रगुप्त को बनाया, समर्थ रामदास ने शिवाजी को। लेकिन वशिष्ठ को लीजिये, वे उन राम की श्रद्धा के पात्र बन गए जिनकी पूजा आज करोडों लोग करते हैं।राम का साथ देने के लिए उन्होनें भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न जैसे शिष्यों को भी बनाया। इनका चरित्र, इनकी बातें पढ़कर आज भी असंख्य लोग शक्ति और साहस प्राप्त करते हैं।
महर्षि वशिष्ठ की एक सलाह बड़ी अनूठी है- आप चाहे जो कार्य करें, उसमें योग को शामिल जरूर करें। जब भी व्यस्तता से छुट्टी मिले-प्राणायाम,ध्यान और चिंतन करिये।
"ऐसा करने से क्या होगा"?
"ऐसा करने से आपकी आत्मशक्ति आपकी सहायक बन जाएगी।आपकी professional life का कोई भी बुरा प्रभाव आपके मन और आत्मा पर नहीं हो पायेगा।आप शांति और उल्लास में सराबोर रहेंगे।आप अपनी full capacity से कार्य कर पाएंगे।"
यही कारण है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां अक्सर apne employees के लिए तरह तरह के मोटिवेशनल प्रोग्राम चलाती रहती हैं।
दोस्तों, आइये हम भी गुरु वशिष्ठ जी की इस बात को मानकर अपने अवकाश के पलों में से कुछ पल योग के अध्ययन और पालन में जरूर बिताएं।
मित्रों, अब एक व्यक्तिगत बात, आपमें से कई लोगों के संदेश और सुझाव मुझे प्राप्त हो रहे हैं।जिनमें आचार्य अश्विनी जी, आचार्य अजय जी, आचार्य श्रीसत्य जी, योगी प्रकाश जी का मैं विशेष धन्यवाद करता हूँ जो योगविज्ञान को आम जनता तक पहुंचाने का महान कार्य कर रहे हैं। आप सब से एक ही बात कहनी है- ये वेबसाइट आपकी है और आपका हर सुझाव जल्दी ही implement करने का प्रयास होगा।
Guru bashistha nai yoga ki Shikha ram ko Di y Bharat ko
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