दोस्तों, अपने पिछले लेख में हमने ये जाना था कि योग की उत्पत्ति पहले एक दर्शन या विचारधारा के तौर पर हुई थी। आइये आज हम जानेंगे कि ये महान दर्शन कैसे व्यवहारिक रूप से एक विज्ञान के तौर पर उभरा और कैसे इस क्षेत्र में आचार्यों एवं महापुरुषों के द्वारा इसे जनता में लोकप्रिय बनाया गया।
आइये शुरू करें।
इसको सर्वप्रथम महर्षि पतंजलि ने विज्ञान के तौर पर develop किया और पातंजल योगसूत्र नामक ग्रंथ लिखा।
"इसमें क्या है"?
"195 सूत्र हैं जिन्हें follow करके समाधि को प्राप्त कर सकते हैं"
" समाधि क्या है"?
" जब व्यक्ति खुद को समझ ले तो वो condition समाधि है।इसमें व्यक्ति सर्वशक्तिमान बन जाता है"
यहां एक रोचक चीज़ जानते हैं। पतंजलि कहते हैं कि बिना समाधि के हम अपने आप को नहीं जान सकते।
"ऐसा कैसे?"
"एक उदाहरण से समझते है।आप एक खाली कागज़ लीजिये।अब उसपर अपना परिचय या introduction लिखिए।बस एक शर्त है। आपके शरीर से संबंधित कोई data जैसे नाम, कद, वजन, देश,भाषा ,पद, बैंक बैलेंसआदि लिखना मना है।"
" शरीर से संबंधित data क्यों लिखना मना है"
"इसलिए मना है क्योंकि जन्म के पहले ये आपके साथ नहीं था और मृत्यु के बाद भी नहीं रहेगा।मृत्यु के बाद आप घर,गाड़ी,पैसा किसी चीज़ का भी use नहीं कर सकेंगे।"
दोस्तों, यकीन मानिए। पतंजलि की शर्त आप पूरी नहीं कर पाएंगे।सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि आपका वास्तविक introduction क्या है? यही तो है पतंजलि का तरीका। आप उनसे जुड़िये।वो आपके मन में सत्य को प्राप्त करने की इच्छा और साहस भर देंगे।
महर्षि पतंजलि ने अपने ग्रंथ में केवल सूत्र लिखे। सूत्र मतलब formula। इन सूत्रों की व्याख्या आगे जाकर अनेक लोगों ने अनेक तरीकों से की। अतः एक ही सूत्र की हमें अनेक व्याख्याएं देखने को मिल जाती हैं।लेकिन मूल भावना एक है-सत्य की खोज। अब चाहे वो विवेकानंद के नजरिए से हो या ओशो के नजरिये से।
आइये, अब एक और रोचक चीज़ जानें।पतंजलि ने अपने ग्रंथ में पूरी प्रक्रिया लिख डाली।सारे formulas लिखे जो आज भी ज्यों के त्यों प्रचलित हैं। लेकिन ये formulas बड़े ही नीरस लगते हैं। आप पढ़ेंगे तो लगेगा कि यार कहाँ फंसा दिया मुझे!!
यहीं पर गुरु का रोल आरम्भ हो जाता है। आप पतंजलि के इन सूत्रों को किसी योग विशेषज्ञ या गुरु से आसानी से समझ सकते हैं। कैसे? वो आपकी रुचि जगा देता है।
पतंजलि ने शिष्यों की एक अच्छी खासी संख्या तैयार की ताकि योग को अलग अलग क्षेत्रों में पहुंचाया जा सके। उन्हें इस कार्य में शासक वर्ग का सहयोग भी मिला।
आइये, अब एक और महापुरुष को जानें जिन्होंने जनता में योग को पॉपुलर बनाया।
उनका नाम था अष्टावक्र।मतलब आठ अंगों से टेढ़ा अपंग व्यक्ति।देखने में बहुत ही बदसूरत थे।कड़वे उपदेश देने के लिए प्रसिद्ध थे। इनकी चर्चा रामायण और महाभारत में आती है।
अष्टावक्र अपनी वैज्ञानिक सोच के लिए प्रसिद्ध थे। किसी जटिल चीज़ को भी ऐसे समझाते थे कि एक बच्चे की समझ में भी आ जाये। यही कारण था कि वह बहुत लोकप्रिय हुए।
उनकी लोकप्रियता को देखते हुए मिथिला के राजा जनक ने उन्हें बुलाया जो कि खुद एक बहुत बड़े विद्वान थे।
राजा और उसके दरबारियों तथा अष्टावक्र के बीच जो भी घटा था, वो बड़ा ही दिलचस्प है। अगर संभव हुआ तो मैं इसपर अलग से एक लेख लिखूंगा।
अष्टावक्र और राजा जनक के बीच हुए argument में अष्टावक्र विजयी हुए। राजा उनके शिष्य बन गए। राजा और तत्कालीन शासकों को योग सिखाने के लिए उन्होंने अष्टावक्र संहिता नामक ग्रंथ लिखा।इसे अष्टावक्र गीता भी कहते है।
ये किताब भले ही आज चर्चा में नही है लेकिन इसमें लिखी बातें आज भी उतनी ही कारगर हैं, जितनी पहले थीं।
अगर आप इसे पढ़ेंगे तो कबीरदास की झांकी मिलेगी। जो चीज़ें कभी अष्टावक्र ने बताई थीं, वो सत्य आगे जाकर कबीर ने भी बताया।कबीर भी अपने समय में अत्यधिक लोकप्रिय हुए। उनकी शिक्षाएं आज भी जन जन में प्रचलित हैं। अष्टावक्र गीता वही ग्रंथ है, जिसे पढ़कर स्वामी विवेकानंद के मन में ईश्वर को देखने और खुद को जानने की प्रचंड जिज्ञासा जाग उठी थी।
दोस्तों, आज हमने महर्षि पतंजलि और अष्टावक्र के बारे में जाना। अगले लेख में हम ऐसे और महापुरुषों के बारे में संक्षिप्त रूप से जानेंगे जिन्होंने योग को अपनी प्रतिभा से समृद्ध बनाया , नए आयाम स्थापित किये और जनता में बहुत popular हुए।
आइये शुरू करें।
इसको सर्वप्रथम महर्षि पतंजलि ने विज्ञान के तौर पर develop किया और पातंजल योगसूत्र नामक ग्रंथ लिखा।
"इसमें क्या है"?
"195 सूत्र हैं जिन्हें follow करके समाधि को प्राप्त कर सकते हैं"
" समाधि क्या है"?
" जब व्यक्ति खुद को समझ ले तो वो condition समाधि है।इसमें व्यक्ति सर्वशक्तिमान बन जाता है"
यहां एक रोचक चीज़ जानते हैं। पतंजलि कहते हैं कि बिना समाधि के हम अपने आप को नहीं जान सकते।
"ऐसा कैसे?"
"एक उदाहरण से समझते है।आप एक खाली कागज़ लीजिये।अब उसपर अपना परिचय या introduction लिखिए।बस एक शर्त है। आपके शरीर से संबंधित कोई data जैसे नाम, कद, वजन, देश,भाषा ,पद, बैंक बैलेंसआदि लिखना मना है।"
" शरीर से संबंधित data क्यों लिखना मना है"
"इसलिए मना है क्योंकि जन्म के पहले ये आपके साथ नहीं था और मृत्यु के बाद भी नहीं रहेगा।मृत्यु के बाद आप घर,गाड़ी,पैसा किसी चीज़ का भी use नहीं कर सकेंगे।"
दोस्तों, यकीन मानिए। पतंजलि की शर्त आप पूरी नहीं कर पाएंगे।सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि आपका वास्तविक introduction क्या है? यही तो है पतंजलि का तरीका। आप उनसे जुड़िये।वो आपके मन में सत्य को प्राप्त करने की इच्छा और साहस भर देंगे।
महर्षि पतंजलि ने अपने ग्रंथ में केवल सूत्र लिखे। सूत्र मतलब formula। इन सूत्रों की व्याख्या आगे जाकर अनेक लोगों ने अनेक तरीकों से की। अतः एक ही सूत्र की हमें अनेक व्याख्याएं देखने को मिल जाती हैं।लेकिन मूल भावना एक है-सत्य की खोज। अब चाहे वो विवेकानंद के नजरिए से हो या ओशो के नजरिये से।
आइये, अब एक और रोचक चीज़ जानें।पतंजलि ने अपने ग्रंथ में पूरी प्रक्रिया लिख डाली।सारे formulas लिखे जो आज भी ज्यों के त्यों प्रचलित हैं। लेकिन ये formulas बड़े ही नीरस लगते हैं। आप पढ़ेंगे तो लगेगा कि यार कहाँ फंसा दिया मुझे!!
यहीं पर गुरु का रोल आरम्भ हो जाता है। आप पतंजलि के इन सूत्रों को किसी योग विशेषज्ञ या गुरु से आसानी से समझ सकते हैं। कैसे? वो आपकी रुचि जगा देता है।
पतंजलि ने शिष्यों की एक अच्छी खासी संख्या तैयार की ताकि योग को अलग अलग क्षेत्रों में पहुंचाया जा सके। उन्हें इस कार्य में शासक वर्ग का सहयोग भी मिला।
आइये, अब एक और महापुरुष को जानें जिन्होंने जनता में योग को पॉपुलर बनाया।
उनका नाम था अष्टावक्र।मतलब आठ अंगों से टेढ़ा अपंग व्यक्ति।देखने में बहुत ही बदसूरत थे।कड़वे उपदेश देने के लिए प्रसिद्ध थे। इनकी चर्चा रामायण और महाभारत में आती है।
अष्टावक्र अपनी वैज्ञानिक सोच के लिए प्रसिद्ध थे। किसी जटिल चीज़ को भी ऐसे समझाते थे कि एक बच्चे की समझ में भी आ जाये। यही कारण था कि वह बहुत लोकप्रिय हुए।
उनकी लोकप्रियता को देखते हुए मिथिला के राजा जनक ने उन्हें बुलाया जो कि खुद एक बहुत बड़े विद्वान थे।
राजा और उसके दरबारियों तथा अष्टावक्र के बीच जो भी घटा था, वो बड़ा ही दिलचस्प है। अगर संभव हुआ तो मैं इसपर अलग से एक लेख लिखूंगा।
अष्टावक्र और राजा जनक के बीच हुए argument में अष्टावक्र विजयी हुए। राजा उनके शिष्य बन गए। राजा और तत्कालीन शासकों को योग सिखाने के लिए उन्होंने अष्टावक्र संहिता नामक ग्रंथ लिखा।इसे अष्टावक्र गीता भी कहते है।
ये किताब भले ही आज चर्चा में नही है लेकिन इसमें लिखी बातें आज भी उतनी ही कारगर हैं, जितनी पहले थीं।
अगर आप इसे पढ़ेंगे तो कबीरदास की झांकी मिलेगी। जो चीज़ें कभी अष्टावक्र ने बताई थीं, वो सत्य आगे जाकर कबीर ने भी बताया।कबीर भी अपने समय में अत्यधिक लोकप्रिय हुए। उनकी शिक्षाएं आज भी जन जन में प्रचलित हैं। अष्टावक्र गीता वही ग्रंथ है, जिसे पढ़कर स्वामी विवेकानंद के मन में ईश्वर को देखने और खुद को जानने की प्रचंड जिज्ञासा जाग उठी थी।
दोस्तों, आज हमने महर्षि पतंजलि और अष्टावक्र के बारे में जाना। अगले लेख में हम ऐसे और महापुरुषों के बारे में संक्षिप्त रूप से जानेंगे जिन्होंने योग को अपनी प्रतिभा से समृद्ध बनाया , नए आयाम स्थापित किये और जनता में बहुत popular हुए।
Comments
Post a Comment