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भारत का मुकुट: जम्मू कश्मीर-भाग 2

भारत का मुकुट: जम्मू कश्मीर- भाग 1 में हमने भारत -पाक के बीच तनाव के मूल कारण कश्मीर समस्या के ऐतिहासिक पहलू को समझा था।
पिछ्ली कड़ी के अंत में कश्मीर समस्या जन्म ले चुकी थी। अब आगे चलते हैं।
दोस्तों, आज़ादी के समय किसी भी नए राज्य को भारत मे शामिल करने के लिए जरूरी था कि वहां का राजा दो documents के ऊपर signature करके भारत सरकार को दे दे-
1. Instrument of accession- ये वो अधिकारपत्र था जिसके आधार पर भारत की फौज और प्रशासन वहां जाकर कार्य कर सकते थे।
2. Instument of merger- मतलब? ये राज्य तन मन धन से भारत का एक हिस्सा हो गया।
हरिसिंह ने केवल पहला document ही sign किया जिससे भारत की फौज वहाँ जाकर उनकी रक्षा कर सके एवं भारत के कर्मचारी उनके ध्वस्त हो चुके प्रशासन को संभाल सकें। और दूसरा document? । जबतक विधिवत रूप से हम इसे लेते, मामला तो कहीं और जा चुका था! हरिसिंह ने धारा 370 को बड़े अच्छे से लपक लिया।
पाकिस्तान की फौज भारत से पिटकर भाग ही रही थी कि भारत संयुक्त राष्ट्र की शरण में जाकर पाक को जीवनदान दे बैठा। जी हां, एक तिहाई कश्मीर तो पाक के पास बचा ही रह गया जिसे उसने आज़ाद कश्मीर का नाम देकर आतंक की प्रयोगशाला के रूप में विकसित किया।
आज़ादी के बाद भारत तो पढ़ाई लिखाई एवं विकास के कामों में लग गया। लेकिन पाकिस्तान ने सेना मजबूत करने पर ही ध्यान दिया। दुनिया के देशों ने भी लाभ उठाया! ऊल जुलूल, outdated, कबाड़ हो चुके हथियार मुंहमांगे price पर बेच डाले। पाक ने भी खरीद डाले। अब जंग का बहाना ढूंढना बाकी था। सन 1965 में चीन से लड़ाई के बाद भारत की स्थिति जर्जर हो चुकी थी। पाक को मौका मिल ही गया।
सन 1965 में-
पाक-"कश्मीर दो, कश्मीर दो, नहीं तो चीन की तरह हमला कर दूंगा".
भारत-" चल हट, कर ले युद्ध, इस बार हमारे किसान और जवान पूरी तरह तैयार हैं- जय जवान, जय किसान"।
संयुक्त राष्ट्र- जनमत संग्रह कराओ, युद्ध मत करो।

1965युद्ध में पाकिस्तान की तमाम war machines को भारत ने तोड़ फोड़ डाला। अब समझौता ही समझदारी थी। पाक के आका लोगों ने शांति के लिए सुझाव देने शुरू कर दिए।
अंतरराष्ट्रीय जगत- बहुत मार पीट हो चुकी, अब शांति से रहो। ताशकंद आकर समझौता कर लो।
भारत- ठीक है।
पाक- ठीक है।

 सन 1965 में जब पाक का जोर भारत पर नहीं चल पाया तो उसने अपने अपने ही देश के बंगला भाषी नागरिकों पर अत्याचार शुरू कर दिए। अनेक सालों तक अत्याचार सहन करने पर जब बंगालियों का धैर्य खत्म हो गया तो उन्होंने अलग देश- बांग्लादेश की मांग शुरू कर दी। अहिंसक तरीके से शुरू हुए इस आंदोलन को पाक ने टैंको एवं तोपों से कुचलना शुरू कर दिया। करोड़ों बांग्लादेशी भागकर भारत में शरण लेने को मजबूर हो गये।
सन 1971 में-
भारत- बंगला भाषियों पर अत्याचार बंद करो।
पाक- बंगला लोग हमारे नागरिक हैं। उनको मारें या प्यार करें, ये हमारा अंदरूनी मामला है।
भारत- करोडों बांग्लादेशी हमारे यहां शरणार्थी बनकर आ चुके हैं। अगर अत्याचार बंद नहीं किया तो ठीक नहीं होगा।
पाक- युद्ध करो, युद्ध करो।
1971 के युद्ध में पाक की करारी हार हुई। हर तरफ से परास्त होकर वो ऐसी स्थिति में पहुँच गया जैसी स्थिति शेर के सामने बकरी की होती है।
पाक- हाय हाय।मैं हार गया। मेरे लाखों सैनिक बंदी हो गए।मेरी सेना surrender कर चुकी। बांग्लादेश भी मुझसे अलग हो गया। दुनिया वालों, मुझे बचा लो।
अंतरराष्ट्रीय जगत- पाकिस्तान बहुत ज्यादा मार खा चुका है। भारत please उसे छोड़ दो।
भारत- पाक पहले समझौता करे-शिमला समझौता।
पाक- जो कहोगे, सब मंजूर है।
भारत-चिंता न करो।कोई ऐसी बात नहीं करेंगे जिससे तुम्हारा heavy loss हो जाये।
इस तरह हमने देखा कि पूरी तरह से मजबूत होते हुए भी हमारे देश ने शिमला समझौते में पाक के ऊपर कोई कड़ी शर्त नहीं लगाई।इस वजह से बहुत से विशेषज्ञों का कहना है कि 1971 के युद्ध में भारत ने जो युद्धक्षेत्र में कमाया, बातचीत की टेबल पर बैठकर वह सब लुटा दिया।
1971 के बाद नासमझ पाक को समझ आ गयी कि आमने सामने की लड़ाई में मार खानी पड़ेगी।अतः उसने आतंकवादियों को ट्रेनिंग एवं हथियार देने शुरू किए। जम्मू कश्मीर एवं पंजाब में लोगों का brainwash करने की कोशिश की।
1999 में पाक ने एक और नापाक कोशिश की।कारगिल की चोटियों पर कब्जा किया।भारत के ठिकानों पर गोलीबारी शुरू की।
भारत- हमारा इलाका छोड़कर चले जाओ।
पाक- वो तो मुजाहिदीन भाइयों ने कब्जा किया है। उनसे मिलकर फैसला कर लो।
भारत- हमारी फौज अब फैसला करेगी।
अंतरराष्ट्रीय जगत- पाक, तुम झूठ बोल रहे हो। हटो वहां से। india, हम तुम्हारे साथ हैं। बस border cross मत करना।

भारत- ठीक है।
भारतीय सेना एवं वायुसेना ने अपने सैकड़ों सैनिकों का बलिदान देकर विजय प्राप्त की जिसे operation vijay कहा गया।
कारगिल में भी मार खाने के बाद पाक ने कश्मीर में खुलकर छद्मयुद्ध proxy war चलाना शुरू कर दिया।कैसे?बहुत simple है- युवाओं को गुमराह करो, उन्हें मुजाहिदीन बनाओ और फिर सुरक्षाबलों को तंग करने के काम में लगा दो। बस हो गया। कोई tension नहीं, कोई pension नहीं, कोई liability नहीं। ये सब तो भारत के सुरक्षाबलों के झेलने के लिए छोड़ दो!1999 के बाद से ऐसा ही चलता आ रहा है।
अब इसके पहले की ये लेख बहुत लंबा हो जाये, आते हैं उन दो सवालों पर, जिनका उत्तर हम ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं।बहुत सारे विशेषज्ञों की राय का सारांश हम यहां समझेंगे।
पहला सवाल था- भारत पाक दुश्मनी की मूल वजह क्या है? दुश्मनी चलती ही क्यों रहती है।
इसकी मुख्य वजहें तीन हैं-
पहला, पाकिस्तान का गठन भारत विरोध की बुनियाद पर ही हुआ था। अतः जबतक इसका अस्तित्व है,इसे भारत का विरोध करना ही होगा।अगर यह भारत से प्रेमभाव दिखायेगा तो नेपाल एवं भूटान की तरह भारत का एक सहयोगी देश बनकर रह जायेगा। ये इसके नेताओं को मंजूर नहीं।
दूसरा, पाक शुरू से ही बम, बारूद एवं शरारतों में उलझकर रह गया जबकि भारत ने शांति, स्थिरता एवं विकास का रास्ता चुना।जिन चीजों का पाक केवल सपना देख सकता है, वो सब भारत हकीकत में हासिल कर चुका है। satellites, मंगलयान, IIT, IIM आदि कुछ ऐसी ही चीजें हैं। अब खिसियानी बिल्ली खंभा तो नोचेगी ही।
अब तीसरी और सबसे बड़ी वजह। जबतक भारत से दुश्मनी कायम है, पाक के नेताओं को जनता की तरफ से फुर्सत है। शिक्षा, health, सड़क, रोज़गार किसी चीज़ को देने का टेंशन नहीं।जब भी जनता आंदोलन करे, बस भारत का डर दिखा दो।उसके नेताओं का हित इसी बात में रहा है कि भारत से शत्रुता बनी रहे और और बीच बीच में युद्ध का डर भी दिखता रहे।

अब दूसरा सवाल।क्या ये मारा मारी चलती ही रहेगी? क्या वो दिन जल्दी नही आएगा, जब हम कश्मीर में जहां चाहे वहां खुले दिल से घूम सकें।
विशेषज्ञों की राय इस प्रश्न पर divided है-
सकारात्मक- हमारी सेना जल्दी ही उपद्रवियों को ठिकाने लगा देगी।जो लोग पाक से पैसा और प्रोत्साहन लेकर देश से गद्दारी करते हैं, उन्हें छठी का दूध याद दिलाकर सुधार दिया जाएगा।
नकारात्मक- जबतक पाक अपनी नापाक हरकतों पर कायम है, ये सब तो चलता ही रहेगा।
अगर हम देखें तो दोनों ही पक्ष अपनी जगह सही हैं।लेकिन जैसे जैसे अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत की स्थिति मजबूत हो रही है, पहला पक्ष प्रबल होता जा रहा है। आज की तारीख में हम देख सकते हैं कि सुरक्षा बलों को शांति कायम रखने के लिए खुली छूट दे दी गयी है।जम्मू कश्मीर में रेल, सड़क, सिंचाई, रोज़गार आदि की बहुत सारी योजनायें शुरू की गई हैं।इनका प्रभाव दिखना भी शुरू हो गया है। धारा 370 एवं 35A का समाधन निकालने का भी प्रयास हो रहा है जो वहां के निवासियों को शेष भारत से अलग करती हैं। लेकिन 70 साल के नासूर को ठीक होने में कुछ साल तो लगेंगे ही।लेकिन हम यह उम्मीद जरूर कर सकते हैं कि कुछ सालों के बाद गोआ, मनाली और शिमला के साथ साथ श्रीनगर, गुलमर्ग भी एक आम शांतिप्रिय आदमी के travel choices में शामिल होंगे। वैसे भी सभी देशवासियों की यही अभिलाषा है।
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